21 जनवरी 2025, मंगलवार, माघ, कृष्ण पक्ष, सप्तमी, विक्रम संवत 2081
आज भुसावल मण्डल में लखनऊ मुम्बई पुष्पक एक्सप्रेस में एक भीषण दुर्घटना हुई। गाड़ी में आग लगने की अफवाह उड़ी और अन्दर बैठे किसी यात्रीने ख़तरे की जंजीर खींच कर गाड़ी को खड़ा कर दिया। अनारक्षित कोच जिसकी यात्री क्षमता सौ यात्रिओंकी रहती है, जिसमे अमूमन दुगुने, तिगुने यात्री यात्रा करते है, गाड़ी के रुकते ही टपाटप कर गाडीसे उतर गए और सामने की पटरी पर खड़े हो गए। सामने की पटरी पर भुसावल की ओर जाने वाली सुपरफास्ट गाड़ी आ रही थी, जिसकी चपेट में अनिभिज्ञ यात्री आ गए। हादसे में करीबन चालीस से पचास यात्री जख्मी और बारह यात्रिओंकी जान चली गई ऐसी ख़बर है।
क्यों होते है ऐसे अबूझ, अकल्पनीय हादसे? क्या यात्रिओंको गाड़ी से बाहर ज्यादा सुरक्षित लग रहा था? क्या सचमुच गाड़ी में आग लगी थी या महज किसी मनचलों ने मखौल, मस्ती की थी?
दरअसल प्लेटफार्म पर भगदड़, चलती गाड़ी से गिर जाना या इस तरह अफवाह फैलाकर यात्रिओंको भरमाना यह सब की जड़ रेल विभाग में चल रही अमर्याद अनारक्षित टिकट बिक्री है।
आजकल प्रत्येक लम्बी दूरी की मेल/एक्सप्रेस/सुपरफास्ट गाड़ियोंमे कोच संरचना का मानक तय किया गया है, जिसमे चार कोच अनारक्षित, छह कोच स्लिपर और अन्य उच्च वर्गीय वातानुकूल कोच लगाए जा रहे है। केवल साढ़े चार अनारक्षित कोच जिसमे आधा यात्री कोच एसएलआर होता है, जिनकी कुल यात्री संख्या हुई LHB गाड़ी में 440 और ICF गाड़ी में 400।
अब इन गाड़ियोंमे यह अनारक्षित कोच अपने प्रारम्भिक स्टेशन से ही बेतहाशा भर जाते है। बेतहाशा का अर्थ है, कमसे कम दुगुने भर जाते है। मार्ग पर रुकने वाले प्रत्येक स्टेशन को अनारक्षित टिकट जारी करने पर किसी तरह का कोई प्रतिबन्ध नही है। वहाँ से कुछ न कुछ अनारक्षित यात्री इन कोचों में यात्री संख्या बढाते ही चलते है। मात्र 4 – 6 स्टोपेजेस में इन कोच की हालत यात्रिओंके ठूँसे जाने की अवस्था मे होती है। इन कोचों में यात्रा कर रहे यात्रिओंकी सारी सुरक्षा केवल ‘रामभरोसे’ है। पता नही कब कोई मनचला कुछ अफवाह फैला दे और यात्री जो बेचारा अपनी जान मुठ्ठी में बांध यात्रा कर रहा है, गाड़ी से कूद पड़े। 😢
हमने पीछे भी इस समस्या को अपने लेखों द्वारा उजागर किया है।
रेल विभाग को यह अमर्याद अनारक्षित टिकट बिक्री को संतुलित करना होगा। इस पर कारगर उपाय है –
संक्रमण काल मे द्वितीय श्रेणी के अनारक्षित टिकटोंपर रोक लगाई गई थी। सभी द्वितीय श्रेणी अनारक्षित टिकट को आरक्षित 2S में बदल दिया गया था। इससे केवल आरक्षित एवं अधिकृत यात्री ही यात्रा कर सकते थे। साथ ही कोच की यात्री क्षमता अनुसार ही टिकटों का आबंटन किया जा रहा था।
माना की वह अलग एवं प्रतिबंधित काल की योजना थी। मगर अब भी इस प्रकार कुछ प्रतिबन्ध लगाए जा सकते है।
जैसे की,
200 किलोमीटर से ज्यादा अंतर का अनारक्षित टिकट बिक्री तत्काल रूप से बन्द की जाए।
200 किलोमीटर से ज्यादा अंतर के प्रत्येक टिकट को आरक्षित स्वरूप में 2S श्रेणी की तरह बेचा जाए। जिससे यात्री क्षमता से ज्यादा यात्री अनारक्षित स्वरूप में द्वितीय श्रेणियों में यात्रा न कर पाए।
1000 किलोमीटर से ज्यादा अन्तर चलनेवाली सभी गाड़ियोंको पुर्णतः आरक्षित गाड़ियोंमे बदला जाए। अर्थात इन गाड़ियोंके सभी द्वितीय श्रेणी कोच में 2S श्रेणी की टिकट बुकिंग की जाए।
ज्यादा अनारक्षित टिकिट बुकिंग क्षेत्र के मार्ग पर दिन भर की अवधि में कमसे कम चार जोड़ी अनारक्षित डेमू/मेमू/इंटरसिटी गाड़ियाँ चलें यह सुनिश्चित किया जाए।
अनारक्षित टिकट का पुनर्मूल्यांकन किया जा सकता है। कई मार्गोंपर स्थानीय रोडवेज के यात्री टिकटों के मूल्य रेल टिकटोंसे लगभग चार से पांच गुना महंगे है। ऐसी स्थिति मे रेल गाड़ियोंमे यात्रिओंकी बेशुमार भरमार होना सहज बात है।
रेल आरक्षण में द्वितीय श्रेणी के 2S आरक्षण की अवधि को केवल एक सप्ताह, सात दिन एवं स्लिपर क्लास की अवधि को एक माह, तीस दिनोंतक तक सीमित किया जाए। ताकि ताबड़तोड़ यात्रा करनेवाले यात्रिओंको टिकट आरक्षित करने का अवसर मिले।
रेल विभाग की चार्टर्ड ट्रेन सुविधा ‘FTR’ को सुलभ एवं सरल किया जाए और अमूमन प्रत्येक जंक्शन स्टेशन पर इस सबन्ध में जानकारी हेतु पत्रक लगाए जाए।
वन्देभारत प्रीमियम रेल गाड़ियोंकी तर्ज़ पर पाँचसौ किलोमीटर अन्तर में परिचालित ग़ैरवातानुकूलित तेज इंटरसिटी गाड़ियोंको आवश्यकता नुसार चिन्हित किया जाए।
भारतीय रेल हम भारतीयों के लिए हमारा अत्यावश्यक राष्ट्रीय परिवाहन है और अब इसमें जरूरी बदलाव की बेहद आवश्यकता है।