07 जुलाई 2024, रविवार, आषाढ़, शुक्ल पक्ष, द्वितीया, विक्रम संवत 2081
भारतीय रेल, भारत की नैशनल कैरियर। भारत मे कहींसे कहीं तक यात्रा करने का सुगम, सरल और सस्ता पर्याय। उच्च वर्ग से निम्न आय तक के सभी वर्गोंको समाहित करने वाली भारतीय रेल संक्रमण काल से अपनी सुव्यवस्थित नीति बनाने की जद्दोजहद कर रही है।
संक्रमण काल शुरू होने के पूर्व ही भारतीय रेल ने एक ‘शून्याधारित समयसारणी’ का कार्यक्रम जारी करने का विचार किया था। इस कार्य के अंतर्गत सभी यात्री गाड़ियोंके परिचालन को शून्य बेस में लाकर उनके समयसारणी की पुनर्रचना करना था। मुख्य उद्देश्य यह था, गाड़ियोंकी पुनर्रचना कर रेल संपदाओं के रखरखाव हेतु उचित टाइम स्लॉट्स दिए जा सके और साथ ही कम अंतर की गाड़ियोंके लिए स्लॉट्स बनाए जा सके। इस कार्य मे लम्बी दूरी की गाड़ियों और कम अंतर चलनेवाली गाड़ियोंमे वर्गीकरण होना था। कई लम्बी दुरियोंकी गाड़ियोंके स्टापेजेस रद्द किए गए, समयसारणी बदली गई और सबसे अलग बात उन गाड़ियोंके अनारक्षित कोच की मर्यादा तय की गई।
एक तरफ भारतीय रेल यातायात गति बढ़ा रही थी। रेल ट्रैक्स की गति क्षमता 90 – 110 -130 -160 किमी/घण्टा की जा रही है। दूसरे लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे कम अंतर के यात्रिओंको यात्रा करने से परावृत्त करना था। इस उद्देश्य के लिए रेल विभाग को कम अन्तर चलनेवाली गाड़ियोंको अग्र क्रम से लाना था, जिसमे कम अंतर याने 500 से 700 किलोमीटर की रेंज वाली प्रीमियम गाड़ी वन्देभारत तो आ गई मगर 300 से 500 किलोमीटर की रेंज में चलनेवाली मेमू गाड़ियाँ कहीं पिछड़ गई।
इन कम अंतर की गाड़ियोंमे एक बात और खास हुई की रेल प्रशासन ने पूर्वचलित कई सवारी गाड़ियोंके समयसारणीयों में मामूली सा बदलाव कर उन्हें मेल/एक्सप्रेस की श्रेणियोंमे आम यात्रिओंपर लाद दिया। जिन गाड़ियोंमे सवारी दर के निम्नतम किराए लग रहे थे, वह अचानक ही तिगुने किराए की मेल/एक्सप्रेस बन गई। यह बदलाव आम यात्रिओंको बड़े मुश्किल से पचाना पड़ा। जब 35 किलोमीटर औसत गति से चलनेवाली गाड़ी और 55, 60 औसत गति से चलनेवाली गाड़ी का किराया समान हो तो कौन होशियार नियमित मेल/एक्सप्रेस को छोड़ इनमें यात्रा करेगा? मेल/एक्स. गाड़ियोंमे अचानक साधारण टिकट धारकोंका दबाव बढ़ने का यह मुख्य कारण था। यहाँ रेल प्रशासन की नीति गड़बड़ा गई।
अब जो इलाज, उपचार रेल प्रशासन करने जा रहा है, वह फिर उनकी नीतियोंको ठीक उसी जगह ले जा कर रखेगा जहाँ से वह चले थे। जो कम अंतर और लम्बी दूरी के यात्रिओंमें वर्गीकृत गाड़ियाँ रखी जानी थी, वह इस नियमित गाड़ियोंमे साधारण कोच बढाने के निर्णय से बहुत दूर हो जाएगी।
रेल विभाग को चाहिए, की उन्हें पहले अपने कम अंतर चलनेवाली गाड़ियोंके परिचालन को सुधारना आवश्यक है। भारतीय रेल में यात्रा करनेवाले आम यात्रिओंकी संख्या, उच्च वर्गीय यात्रिओंसे कई गुना ज्यादा है। उसमें भी सांख्यिकी यह बात सहजता से सिद्ध कर देगी, 300 से 500 किलोमीटर की यात्रा करनेवाले आम यात्री बहुतायत में है। इनके लिए इंटरसिटी जैसी गाड़ियोंकी बहुत आवश्यकता है। जिन सवारी गाड़ियोंको मेल/एक्सप्रेस में रूपांतरित किया गया, कमसे कम उनमें एक्सप्रेस गाड़ियोंका ‘फील’ अहसास भर तो आना चाहिए न? जो अंतर नियमित मेल/एक्सप्रेस गाड़ी दो, ढाई घण्टे में पार कराती है, यह गाड़ियाँ उसी अंतर के लिए चार से छह घण्टे की समयावधि ले रही है। यह क्या बात हुई?
किसी भी यात्री को लम्बी दूरी के उन खचाखच भरे साधारण कोच में यात्रा करने का चाव नही है। उनमें दो कोच रहे, नही चार रहे, परिस्थितियाँ बदलने वाली नही है। प्रतिक्षासूची के यात्रिओंको आरक्षित यानोंमें यात्रा करने पर पाबन्दीयाँ कोई नई बात नही है, पहले से थी, मगर उन नियमों का पालन अब कड़ाई से करने के निर्देश दिये गए। उन यात्रिओंको साधारण कोच में यात्रा करने की हिदायत दी जा रही है। उत्तर में दिखाया गया है, प्रत्येक गाड़ी में चार कोच साधारण है, आप उसमे यात्रा कीजिए।
कुल मिलाकर यह बात सामने आती है, समस्या कुछ और है और उपचार किसी अलग ही दिशा में किए जा रहे है।
(लेख के विचार सर्वथा लेखक के है।)

