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आशाएँ, आशाएँ…..

17 मार्च 2024, रविवार, फाल्गुन, शुक्ल पक्ष, अष्टमी, विक्रम संवत 2080

😊 शीर्षक देख कर लगता नही न, की यह किसी रेल सम्बन्धी ब्लॉग का शीर्षक हो? जी, हम रेल प्रेमियोंकी, रेल यात्रिओंके लिए पता नही क्या क्या और कैसी कैसी आशाएँ बन्धी रहती है। बीते 8, 10 वर्षों में कई पूरी भी हुई है और कुछ ऐसी है, जो जल्द ही पूरी होने की आशाएँ है।

देश के सुदूर इलाके जम्मू-कश्मीर और ‘फार ईस्ट’ उत्तर पूर्व के सीमान्त क्षेत्र में रेल पहुँचना, देश के रेल नेटवर्क से बड़ी लाइन (ब्रॉड गेज) के जरिए उनकी सम्पर्कता जुड़ना बड़ी उपलब्धि है। मुम्बई से अगरतला सीधी यात्री गाड़ी और अब जल्द ही कश्मीर में श्रीनगर तक सीधी गाड़ी होना बड़ी बात है न? अब आप कहेंगे, देश मे किसी शहर से किसी शहर को जोड़ा जाना कोई विशेष तो नही, मगर यह बात जब देश मे रेल शुरू होने के लगभग पौने दो सौ साल में पूरी होती है तो बहुत विशेष ही है।

कई रेल क्षेत्र ऐसे है, जिनमे अब, बड़ी लाइन (ब्रॉड गेज) अमान परिवर्तन कर डली जा रही है। नई रेल लाइने, रेल दोहरीकरण, तिहरीकरण, चार – पाँच रेल लाइने! हाँ! नही सोचते थे कभी, की भुसावल – जलगाँव के बीच, मात्र 25 किलोमीटर अन्तर में रेल की चार लाइने डल जाएंगी और अब पाँचवी की तैयारी चल रही है। नही सोचा था कभी की, विदेशों में चलती है वैसी सुन्दर, आरामदायक रेल गाड़ियाँ भारतीय रेल पर भी चलेंगी, 102 वन्देभारत प्रीमियम गाड़ियाँ चल रही है और यात्रिओंको खासी पसन्द आ रही है, उनकी आवश्यकताएँ पूर्ण कर रही है। वन्देभारत तो खैर प्रीमियम रेन्ज की यात्री गाड़ी है, मगर आम मेल/एक्सप्रेस गाड़ियाँ? वे गाड़ियाँ भी अब नई LHB कोच संरचना से गतिमान हुई है, 130 किलोमीटर की तेज गति से चल रही है। साधारण सवारी गाड़ियोंको अब डेमू/मेमू के ट्रेन सेट में बदला जा रहा है, जिन्हें अलग से लोको जोड़ने की जरूरत नही और न ही शंटिंग करने की।

रेल विभाग में बरसों चलते रही शंटिंग पद्धति को भी रेल प्रशासन ने लगभग बन्द कर दिया है। यह सब देशभर की रेल लाइनोंके समग्र विद्युतीकरण कार्यक्रम से सम्भव हो पाया है। अब लम्बी दूरी की यात्री गाड़ियाँ, मालगाड़ियाँ प्रारम्भिक स्टेशन से गन्तव्य तक शायद ही लोको बदलने के लिए रुकती है। बस, परिचालनिक कर्मी, लोको पायलट बदले की चली। इससे रेल यातायात में बहुत बडे, कीमती समय की बचत हुई है।

अमूमन प्रत्येक जंक्शन स्टेशन के सामने बाईपास रेल मार्ग बनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत अत्यंत व्यस्त रेल जक्शनोंसे हो चुकी है। इससे लोको रिवर्सल में जो कीमती समय, श्रम और रेल खण्ड को उतने समय अटका कर रखने से निजात मिल रही है। जहाँ बाईपास के लिए ज्यादा जमीन उपलब्ध नही है वहाँपर उडडान पुल, फ्लाई ओवर के जरिए रेल लाइन डाल, जंक्शन स्टेशन की व्यस्तता कम की जा रही है।

रेलवे स्टेशनोंका आधुनिकीकरण किया जा रहा है। कुछ वर्षों पहले रेल स्टेशनोंपर दिव्यांगों, वृध्दों या मरीजोंको प्लेटफार्म पर पहुंचने के लिए, भारवाहको की आवश्यकता होती थी मगर आजकल अमूमन सभी बड़े स्टेशनोंपर रैम्प डल गए है। लिफ्ट, एस्केलेटर जैसी आधुनिक यात्री व्यवस्था उपलब्ध करा दी गई है। जहाँ हमारी एक रैम्प की माँग पर रेल अधिकारियों की हँसी छूट गई थी, उस भुसावल मण्डल में प्रत्येक जंक्शन पर न सिर्फ रैम्प बल्कि लिफ्ट और एस्केलेटर भी लग चुके है। जिन रेलवे स्टेशनोंके आहाते गाँवभर के भिखारियों, आवारा पशुओं, आवारागर्दी का रैन बसेरा हुवा करते थे, आज पर्यटनस्थलों में बदल गए है। गांव और शहरोंकी शान बन चुके है।

मित्रों, यह सारी उपलब्धियाँ बस पिछले दशक भर की है और हम यह परिवर्तन इसलिए बता पा रहे क्योंकि हम हमारी उम्र के पांचवें दशक को पार कर चुके है। रेल जिस गति से आधुनिकीकरण की ओर अग्रेसर है, आने वाले दशक में हम और भी व्यापक बदलाव देखेंगे। रेल की गति 160 और 240 प्रति घण्टा बनने वाली है। वन्देभारत सिटिंग के साथ साथ स्लिपर आवृत्ति भी आ रही है।  400, 500 किलोमीटर प्रति घण्टे से यात्रा कराने वाली बुलेट ट्रेन की तैयारी जोरों शोरों पर है। अमूमन हर बड़े शहर में शहर यातायात के लिए मेट्रो ट्रेन्स का नेटवर्क बन रहा है। दो उद्यमी शहरोंके बीच की यात्रा का समय कम करने हेतु तेजी से काम किया जा रहा है। न सिर्फ रेल बल्कि सड़क और हवाई मार्ग का भी विकास तेजी से हो रहा है।

मित्रों, देश के इस यातायात विकास में आप भी अपनी आशाएँ, अपेक्षाएँ बन्धी रखिए। जो कभी सोचा भी नही होगा वह भी पूरा होने की स्थितियाँ बन जाती है। “लेट द फिंगर् क्रॉस” ☺️