खंडवा के नवनिर्वाचित सांसद ज्ञानेश्वर पाटील ने जैसे ही सांसद पद की शपथ ली सीधे रेल मंत्रालय का रुख किया। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की और प्रदेश के जनता की अनवरत माँग मंत्रीजी के सामने रखी। खंडवा – इंदौर रेल गेज कन्वर्शन के बचे हिस्से महू – सनावद रेल मार्ग को प्राथमिकता से किए जाने और खंडवा से सनावद (ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग) के बीच मेमू यात्री ट्रेन जल्द से शुरू करने के बारे में पत्र दिया।
विशेष बात यह है, यह पूरा आमान परिवर्तन का प्रोजेक्ट रतलाम – अकोला ऐसा है। प्रोजेक्ट में रतलाम से इन्दौर होते हुए महू तक आमान परिवर्तन हो चुका है और बड़े गेज की गाड़ियाँ भी सुचारू रूप से चलने लँग गयी है। इसी प्रकार सनावद से मथेला स्टेशन जो की भुसावल – इटारसी मुख्य रेल मार्ग का खण्डवा से इटारसी की ओर, खण्डवा से पहला स्टेशन है। खण्डवा से अकोला में आकोट से अकोला का भी गेज कन्वर्शन हो चुका है। तकलीफ़ यह है, इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए क्षेत्र के राजनीतिक मिलकर जोर नही लगा रहे। जिनके क्षेत्र में गेज कन्वर्शन हो चुका वह अपने क्षेत्र में रेल के इतर विषयों पर बात करते है। यह ठीक ‘बॉल पासिंग गेम’ की तरह हो गया है। जिसके पाले में गेंद अटकी वही परेशानी झेलेगा। जिन क्षेत्रोंके रेल मार्ग का कार्य हो चुका है उन्हें इस प्रोजेक्ट के पूर्णत्व की ज्यादा चिन्ता नही है।
यह प्रोजेक्ट पूरा होता है तो न सिर्फ मालवा, निमाड़ क्षेत्र को इसका लाभ होगा अपितु यह मार्ग पुराने मीटर गेज के स्वर्णयुग में लौट आएगा। यह मीटर गेज लाइन राजस्थान के जयपुर से दक्षिण भारत के काचेगुड़ा को जोड़नेवाला प्रमुख मार्ग हुवा करता था। आज इस मार्ग के लंबित प्रकरण के चलते कई गाड़ियाँ 200 से 300 किलोमीटर, इधर उधर से घूम कर जा रही है। क्षेत्र की जनता आज भी रुके हुए विकास को कोसती है। उन्हें आज के, उनके अपने प्रतिनिधियोंके बजाय स्वातंत्र्य पूर्व अंग्रेजोंकी तत्परता अधिक भाती है।
इस रेल आमान परिवर्तन कार्य का लाभ राजस्थान के जयपुर, अजमेर, चित्तौड़, मध्यप्रदेश के मालवा, निमाड़, महाराष्ट्र के विदर्भ, खान्देश, मराठवाड़ा, तेलंगाना के हैदराबाद क्षेत्र के तमाम आबादी को होने वाला है। चूँकि दक्षिण से उत्तर में रेलगाड़ियाँ इधर उधर से गाड़ियाँ से ही सही चल रही है तो इस मार्ग पर जनप्रतिनिधियों ने ज्यादातर ध्यान देना, आग्रह करना कम कर दिया है।
जिस क्षेत्र में आजसे 10-15 वर्ष पूर्व यात्रिओंसे खचाखच भरी गाड़ियाँ चलती थी, अकोला – खण्डवा – महू वह आदिवासी बहुल क्षेत्र आज रेल गाड़ियोंके आवाज तक को तरस गया है। एक तरफ ऊंचे ऊंचे क़ुतुब मीनार से पुल का निर्माण किया जा रहा है,16 – 16 किलोमीटर की सुरंग बा कर रेल पहाड़ों से चलाने का कमाल किया जा रहा है, समुंदर पर से रेल निकल रही है तो नर्मदा जी से क्यों कर दिक्कतें दिखाई दे रही है?
प्रदेश की पीड़ित जनता अब हताशा की सीमा भी पार कर गयी है। प्रोजेक्ट के बारे में माँग करते करते उनके गले से स्वर ही गायब हो गए है। विकास जो भी है, पास पड़ोस में ही जन्मता है और वहीं पल बढ़ रहा है। हर जनप्रतिनिधि नई डेडलाइन देकर फिर नया सपना संजोए आगे बढ़ जाता है। जनता सूरजमुखी के फूल की तरह नए से उल्हासित होती है, दिन ढला फिर बुझ जाती है, फिर बुझ जाती है।