ज़ाहिर सी बात है, जब 200 वन्देभारत गाड़ियाँ चलाने बात हो चुकी है, तो प्रत्येक क्षेत्र को यह ट्रेनसेट का प्रसाद बंटना तय है। फिर क्यों ऐसी हुल्लड़ मची है?
वन्देभारत गाड़ियोंको लेकर अलग अलग घोषणाएं प्रत्येक क्षेत्र आये दिन करते जा रहे है। पाँचवी वन्देभारत गाड़ी दक्षिण रेलवे के चेन्नई – बंगालुरु – मैसुरु के बीच तो छठी सिकन्दराबाद – विजयवाड़ा के बीच चलने की बात सामने आ रही है। साथ ही महाराष्ट्र में मुम्बई – सोलापुर के बीच भी जनवरी 2023 से वन्देभारत चलने लग जायगी यह सुनने में आ रहा है।
वन्देभारत गाड़ी, जिसकी परिचालन क्षमता 180kmph है मगर जितनी भी आगामी परिचालन की घोषणा की गई, क्या उन मार्गों के ट्रैक और इतर बुनियादी सुविधाएं इस सेमी हाई स्पीड गाड़ी के लिए उपयुक्त है? शायद नही। फिर यह गाड़ियाँ किस तरह चलनेवाली है? 110 kmph की गति से? शायद हाँ। खैर, वैसी भी चले तो यात्रिओंको नई गाड़ी की दरकार है। अब वन्देभारत चले या वन्देमातरम (इति : महाराष्ट्र के माननीय उप मुख्यमंत्री महोदय) यात्री को केवल अपने गन्तव्य स्टेशन की रेल चाहिए।
अब मुम्बई – सोलापुर की बात ले लीजिए, आज ही ख़बरों में वहीं बुनियादी सुविधाओं पर सवाल उठाए गए है और कहा गया है, आने वाले ड़ेढ वर्ष तक इस मार्ग पर सेमी हाई स्पीड गाड़ियोंका दौड़ना सम्भव नही होगा। वैसे वन्देभारत गाड़ियाँ जहाँ चलनी थी उन रेल मार्गोंपर बाड़ भी लगाए जाने की बात थी जो सिवा दिल्ली – मथुरा रेल मार्ग के अलावा कहीं ओर तो शुरू भी नही किया गया है। ऐसे में मवेशियों के रेल से टकराने के हादसे हो रहे है।आप सहज ही समझ सकते है, की कोई रेल 180 kmph अर्थात 1 मिनट में 3 किलोमीटर या 20 सेकण्ड में 1किलोमीटर की गति से आ जाती है तो मवेशियों को क्या आम रेल कर्मी जो पटरियों पर काम करते रहता है, कितना कम मौका मिलेगा पटरियों से हटने का?
एक एक वन्देभारत गाड़ियाँ शुरू करने की घोषणाएं इतनी जल्दी तेजी से की जा रही है, की ऐसा लगता है, आने वाले दिनोंमें यह हाई स्पीड ट्रेनसेट शायद बहुत दिनोंतक साधारण मेल/एक्सप्रेस के जैसे ही औसत गति से चलती नजर आए।