17 फरवरी 2023, शुक्रवार, फाल्गुन, कृष्ण पक्ष, एकादशी, विक्रम संवत 2079
हाल ही में 12779/80 वास्को डि गामा हज़रत निजामुद्दीन वास्को डि गामा सुपरफास्ट एक्सप्रेस के LHB करण और गाड़ी संरचना के मानकीकरण की खबर आई थी। 15 जून 2023 से यह कोच मानकीकरण लागू होगा। मानकीकरण में गोवा एक्सप्रेस के 09 स्लीपर और 03 द्वितीय श्रेणी की संख्या घटकर मात्र 02 स्लीपर और 02 ही द्वितीय श्रेणी कोच रह जायेगी।

ठीक इसी तरह की कोच संरचना 12289/90 छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस मुम्बई – नागपुर के बीच प्रतिदिन चलनेवाली दुरन्तो एक्सप्रेस और 121121/12 छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस मुम्बई – अमरावती के बीच चलनेवाली प्रतिदिन अम्बा एक्सप्रेस के साथ होने जा रहा है। 15 जून 2023 से यह कोच मानकीकरण लागू होगा। मानकीकरण में दुरन्तो एक्सप्रेस के 08 स्लीपर की संख्या घटकर मात्र 02 स्लीपर कोच रह जायेगी। 12111/12 अम्बा एक्सप्रेस में 08 स्लीपर और 02 द्वितीय श्रेणी कोच की संरचना बदलकर मात्र 02 स्लीपर एवं 04 द्वितीय श्रेणी कोच की की जा रही है। निम्नलिखित परिपत्रक देखें,


मित्रों, क्या आपको नही लगता साधारण यात्रिओंकी सस्ती रेल यात्रा के दिन अब लदने लगे है? सबसे पहले संक्रमण काल मे बन्द की गई सवारी गाड़ियाँ काल की आगोश में चली गयी। गाड़ियोंके स्टोपेजेस वहीं के वहीं मगर उनके कपाल पर ठप्पा लग गया एक्सप्रेस का और किराये दनदनाते बढ़ गए। न्यूनतम ₹10/- से सीधे तिगुने न्यूनतम ₹30/- हो गए। जिन लोकप्रिय और सुविधाजनक गाड़ियोंमे स्लीपर के आरक्षण 120 पहले खुलते ही प्रतिक्षासूची लग जाती है, उनके स्लीपर कोच की आसन क्षमता 75% घटा दी गयी। यह कैसा तर्क है? क्या भारतीय रेल अपनी सारी मेल/एक्सप्रेस/सुपरफास्ट गाड़ियाँ लगभग पूर्णतः वातानुकूलित करने जा रही है?
आगे यह हाल है, यात्री द्वितीय श्रेणी टिकट लेकर यात्रा करने निकल पडते है और द्वितीय श्रेणी कोच की कमी के चलते मज़बूरन ही सही मगर आरक्षित स्लीपर कोच में चढ़ जाते है। स्लीपर कोच के आरक्षित यात्रिओंको परेशानियों का सामना करना पड़ता है, मगर क्या इसका हल यह है, की रेल प्रशासन नॉन एसी कैटेगरी के कोच संरचनाओं से ही हटा दें? एक आम रोजाना रेल यात्रा करनेवाले यात्री की मजबूरी है की वह मजबूरन लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे में कम अन्तर की यात्रा करने के लिए बाध्य है। क्योंकी ग़ैरउपनगरीय क्षेत्रोंमें कम अंतर चलनेवाली गाड़ियोंकी आवृत्ति, बारम्बारता बेहद कमजोर है। सवारी गाड़ियोंके स्थान पर जो मेमू/डेमू गाड़ियाँ एक्सप्रेस के तौर पर लाई गई, उनकी आसन क्षमता पुरानी ICF गाड़ियोंसे सीधी आधी हो गयी है और यात्रिओंके बहुत असुविधाजनक सिध्द हो रही है। मेमू/डेमू गाड़ियोंके कोच मात्र 8 रहते है और वह भी केवल सीट्स। वहीं पारम्परिक ICF कोचेस बड़े और ऊपर बर्थ वाले होने से ज्यादा यात्री धारण क्षमता के होते है। कई स्थानोंपर रेल प्रशासन को नई मेमू/डेमू गाड़ियोंको बदलकर पुरानी ICF गाड़ियाँ लानी पड़ी है।
यह बात तय दिखती है, की रेल प्रशासन अब लम्बी दूरी की गाड़ियोंसे नॉन एसी कोचेस कम करते जा रही है। इसका कारण गाड़ियोंकी गति बढाना, लम्बी दूरी की रेल यात्रा को आरामदायक बनाया यह हो सकता है। मगर उनको चाहिए की सर्वप्रथम कम दूरी के स्थानीय यात्रिओंके गाड़ियोंकी आवृत्तियोंका अभ्यास किया जाए। कम दूरी की सवारी गाड़ियाँ भले ही वह अब एक्सप्रेस के रूप में आये या 300 से 500 किलोमीटर अन्तरों में चलनेवाली इंटरसिटी गाड़ियोंको अनिवार्य रूप से लाया जाये, ताकि कम अंतर के यात्री इन लम्बी दूरी की गाड़ियोंके तरफ अपने कदम न मोड़े।