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आखिर क्यों हो रहे टिकट जाँच दल पर हमले? क्या रेल प्रशासन अपने रेल यात्रीओं के साथ साथ रेल कर्मियों के सुरक्षितता को भी दाँव पर लगा रही है?

06 अप्रैल 2024, शनिवार, चैत्र, कृष्ण पक्ष, द्वादशी, विक्रम संवत 2080

हाल ही की, महज कुछ दिनों पहले, 02 अप्रैल के एक अप्रत्याशित हादसे की खबर है। द प रेल में 22643 एर्नाकुलम पटना द्विसाप्ताहिक एक्सप्रेस में अपनी ड्यूटी कर रहे चल टिकट निरीक्षक TTE के. विनोद को गाड़ी में यात्रा कर रहे यात्री ने कुछ टिकट सबन्धित विवाद के कारण चलती गाड़ी से धक्का देकर गाड़ी के बाहर गिरा दिया। TTE के. विनोद की मृत्यु हो गई। कुछ वर्ष पूर्व इसी तरह के, यात्री द्वारा गाड़ी से फेंके जाने के हादसे से उबरे एक TTE को उस अंधेरी रात में रेल कर्मचारी, चाबी वाले ने सहारा देकर अस्पताल पहुंचाया और उनकी जान बच पाई। इसी तरह की एक घटना में चलती रेलगाड़ी में, एक कार्यरत TTE के हाथ पर यात्री ने काट लिया। प्लेटफार्म टिकट पुँछने पर एक महिला टिकट चेकर को 5-6 महिलाओं के गुट ने पिट डाला।

यह घटनाएं द प रेल विभाग की है, मगर अमूमन सम्पूर्ण भारतीय रेल पर तमाम रेल टिकट जाँच कर्मचारियों में इस तरह की यात्रिओंसे विवाद, हाथापाई की घटनाएं उनके रोजमर्रा के नौकरी का एक भाग बनकर रह गई है। गाड़ियोंके LHB करण और बदली हुई कोच संरचना के बाद इन घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है।

दरअसल नियमित मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमे रेल प्रशासन द्वारा नियत, कोच मानकीकरण कार्यक्रम अंतर्गत द्वितीय श्रेणी कोचों को कम कर वातानुकूल कोचों को बढ़ाया जा रहा है। एक तरफ द्वितीय श्रेणी अनारक्षित टिकटोंकी बिक्री पर कोई बंधन नही है। कम अंतर के यात्री को गाड़ियोंमे किसी तरह का आरक्षित टिकट नही मिल पाता और ना ही वह उच्च वर्ग के ज्यादा किराया वाले वातानुकूल श्रेणी में यात्रा करने का इच्छुक होता है। ऐसी स्थिति में अनारक्षित टिकट ही उसकी यात्रा का आधार बनता है। जब वह अनारक्षित द्वितीय श्रेणी का टिकट लेकर गाडी पर पहुँचता है, तो उसे अपनी आवश्यक यात्रा के लिए कहीं पैर धरने तक की जगह नही दिखती, आवश्यकता के आगे नागरी कर्तव्य की हार हो जाती है और वह यात्री साधारण कोचों की अपेक्षा खाली दिखाई देनेवाले वातानुकूल कोचों की तरफ रुख करता है। उसे पता होता है, यह अपराध है, उसे दण्ड हो सकता है मगर…

एक तरफ पता नही क्यों मगर रेल प्रशासन अपने यात्री किरायोंमे वर्षोँसे कोई वृद्धि नही कर रही, बस यात्रिओंके टिकटों पर ‘56% रियायत में सेवा दे रहे’ ऐसे मेहरबानी युक्त वाक्य छाप कर खुद का यात्री सुरक्षितता और आदर्श मेजबानी से पल्ला झाड़ लेती है। सड़क पर चल रहे निम्नतम वाहन से भी कई गुना सस्ती यात्रा रेल विभाग अपने यात्रिओंको परोस रही है।

भारतीय रेल की किसी भी एक ही यात्री गाड़ी के विभिन्न वर्गों में बहुत भारी अंतर है। द्वितीय श्रेणी साधारण यह निम्नतम किराया श्रेणी और वातानुकूल थ्री टियर इकोनॉमी इस उच्च श्रेणी के निम्नतम वर्ग के किरायोंमे 10 से 12 गुना का फर्क है। दूसरी बात टिकट उपलब्धतता की समझें तो द्वितीय श्रेणी के अनारक्षित टिकट चौबीसों घण्टे, बारह मास बड़ी आसानी से मिल रहे है। वहीं किसी भी वर्ग का आरक्षित टिकट चाहे वह महंगा वातानुकूल वर्ग का हो या ग़ैरवातानुकूलित शयनयान स्लिपर का हो आरक्षण के 120 दिन पहले, शुरू होते ही प्रतिक्षासूची में चला जाता है। 24 घण्टे पहले शुरू होनेवाला तत्काल टिकट निकालना याने ओलम्पिक खेल में उसेन बोल्ट को पछाड़ तमगा हासिल करने से भी दुश्वार है। ऐसे में यात्री अपनी सारी सद्बुद्धि दाँव पर लगाकर, अनारक्षित द्वितीय श्रेणी टिकट लेकर आरक्षित कोचों में चढ़ जाता है।

दूसरी तरफ रेल प्रशासन का बिना टिकट यात्रिओंसे जुर्माना वसूली का बढ़ता लक्ष्य रेल विभाग के टिकट जाँच दल की आफत बढ़ाता है। सम्पूर्ण गाड़ी में गिने चुने TTE, यात्रिओंसे खचाखच भरे कोचों में अपने कर्तव्य पालन करनेकी जद्दोजहद करते नजर आते है। यह बात नही है, की गाड़ी में रेल सुरक्षा कर्मी RPF नहीं होते, मगर उनकी भी सीमाएं है। वह यात्री सुरक्षा पर ध्यान दें की स्टाफ़ पर, रेल विभाग के साजोंसामान की रक्षा करें या उनका दुरुपयोग करनेवाले अवैध घुसपैठीयों पर ध्यान दे? यह सब झमेला अब अस्तव्यस्त हो चुका है। टिकट जाँच दल ग्रुप्स में काम कर रहे है या तो यात्री कोच पर हाजिर ही नही होते। या फिर रेलवे प्लेटफॉर्म पर खड़े खड़े रसीदें काट कर अपने लक्ष्य की पूर्तता कर लेते है।

रेल विभाग जो सिर्फ समयसारणी को शून्याधारित करने की नही बल्कि अपने पूर्ण टिकट व्यवस्थापन को भी शून्याधारित कर पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। रेल विभाग में द्वितीय श्रेणी अनारक्षित टिकटोंकी अमर्याद बिक्री इस सारी समस्याओं की जननी है। छपे हुए प्रतिक्षासूची के आरक्षित टिकट इस समस्या की आग में तेल का काम करते है। द्वितीय श्रेणी साधारण को अनारक्षित की जगह आरक्षित सेवा 2S बनाना चाहिए। साथ ही अनारक्षित टिकट का आबंटन केवल 200 किलोमीटर तक की ही यात्रा का हों। रही बात आरक्षित वर्गों की, जैसे ही किसी गाड़ी का कोई आरक्षित वर्ग की बुकिंग फूल हो, उस गाड़ी का सम्बंधित वर्ग बुकिंग सूची से हटा दिया जाना चाहिए। कोई बुक्ड टिकट रद्द हो, टिकट बुकिंग के लिए उपलब्ध हो तो फिर से वह गाड़ी, वह वर्ग बुकिंग सूची में दिखना शुरू हो जाए। लम्बी लम्बी प्रतिक्षासूची चलाने की कोई आवश्यकता ही नही है।

रेल विभाग को अब मुफ्त में, 120 दिन पहले मिलने वाले प्रतिक्षासूची के धन का मोह यात्रिओंकी सुरक्षा और सुव्यवस्था के एवज पर त्यागने की नितांत आवश्यकता है।

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