18 जुलाई 2023, मंगलवार, अधिक श्रावण, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा, विक्रम संवत 2080
भारतीय रेल समय समय पर अपने नियोजित यात्री गाड़ियोंके अतिरिक्त विशेष गाड़ियोंका आयोजन करते रहता है। कभी यह गाड़ियाँ छुट्टी विशेष (हॉलिडे स्पेशल्स) के नाम पर या कभी धुप काल (समर), ठण्ड काल (विन्टर), त्यौहार (फेस्टिवल) विशेष के नाम धारण कर चलती है। दरअसल यह गाड़ियाँ केवल नाममात्र ‘विशेष’ होती है, इनकी विशेषता यात्रियोंको सुखद, आरामदायक की जगह परेशानी और पीड़ादायक ही है। आइए देखते है,
इन सारी विशेष गाड़ियोंमे किराया दर ‘विशेष’ अर्थात नियमित किराया दर से 1.3 गुना ज्यादा या फिर रेल विभाग के किराया दरों की तत्काल श्रेणी के दर से लिया जाता है। इन गाड़ियोंमे तत्काल बुकिंग के बिना ही सर्व कालीन तत्काल किराया लागू रहता है। साथ ही डिस्टन्स रिस्ट्रिक्शन होने के कारण कम अन्तर की यात्रा टिकट भी लम्बी दूरी की यात्रा टिकट के बराबर मूल्य की होती है।
गाड़ी की संरचना में लगे कोच अमूमन हमेशा ही ‘स्क्रैच कोच’ होते है। अब आप पूछेंगे स्क्रैच कोच क्या होता है। स्क्रैच कोच का अर्थ है, भारतीय रेल साधारणतः अपने यात्री कोचेस को 20 वर्षों के उपयोग के बाद नियमित यात्री गाड़ियोंके परिचालन से हटा देती है, यह होते है स्क्रैच कोच। इनमें से जो कोचेस फिर भी ठीकठाक है, उन्हें रेल विभाग इन विशेष गाड़ियोंको चलाने के उपयोग में लेता है। या यूँ भी कह सकते है, उन स्क्रैच कोच को रिफर्बिश्ड, पुनर्रचना कर, ठीक करके नए जैसा बनाया गया हो, उनसे यह गाड़ियोंको चलाया जाता है।
ज्यादा किराए, पुराने साजसज्जा वाले कोच के अलावा सबसे पीड़ादायक है, इन गाड़ियोंकी बेहद अनियंत्रित समयसारणी। आप किसी भी स्पेशल गाड़ी का परिचालन देख लीजिए, पहले ही ढीलीढाली समयसारणी होती है और इसके बावजूद गाड़ी कभी भी समयानुसार नही चलती। 2-4 घन्टोंसे लेकर 22-24 घण्टे देरी से चलना इन गाड़ियोंके लिए सहज बात है। आम यात्री यदि इन गाड़ियोंके समयसारणीनुसार कोई नियोजन करे तो समझ लीजिए उसकी नैय्या कभी पार ही नही लगनी है।
इसके अलावा, मध्य काल मे तो कुछ विशेष गाड़ियोंके वातानुकूलित कोचोंमे बेडिंग, लिनन की आपूर्ति भी बन्द कर दी थी। यात्रिओंके तीव्र आक्षेपों के बाद इन्हें पुर्नस्थापित किया गया। बेवजह देरी से चलनेवाली इन गाड़ियोंमे रेल विभाग द्वारा चलित पेंट्रीकार सुविधा भी नादारद रहती है, अतः यात्रिओंकी खानपान को लेकर बड़ी परेशानी रहती है।
यह गाड़ियोंकी चल स्थिति को रेल विभाग किसी तरह अद्यावत (अपडेट) नही करता, अतः यात्री को अपनी गाड़ी कितनी देरी से आएगी, कब आएगी इसकी जानकारी के लिए रेल यंत्रणाओंसे सीधा सम्पर्क रखना पड़ता है और उसके बावजूद भी उसे गाड़ी के परिचालन जानकारी पर कोई ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना बड़ा भारी लगता है।
एक वरिष्ठ रेल जानकार के अनुसार यह विशेष गाड़ियाँ “ओपन शेडयूल” के साथ चलाई जाती है, अर्थात रेल परिचालन विभाग के लिए शेड्यूल्ड ट्रेन्स, पूर्वनिर्धारित यात्री गाड़ियोंको अपने समयसारणी अनुसार चलाना बंधनकारक है, प्राथमिकता है। वहीं यह गाड़ियाँ अनशेड्यूल्ड, ग़ैरप्राथमिकता श्रेणी में आती है, अतः इन्हें चलाने में प्राथमिकता नही दी जाती और यह गाड़ियाँ लेट, और लेट होते चली जाती है।
इतनी सारी जानकारियोंके और पीड़ादायी अनुभवोंके बावजूद केवल और केवल मजबूरी की वजह से ही आम यात्री इन गाड़ियोंके यात्रा चक्रव्यूह में फँसता है, और अपने गंतव्य तक पहुंचने के बाद फिर दोबारा विशेष गाड़ी से यात्रा न करने की असफल (😢) शपथ लेता है।
