Fill journey compilation of 10 videos of train travel between Pune to Igatpuri.
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छुट्टियां लगते ही बच्चोंका दिल मचलने लगता है, मामा के यहाँ जाना है, बुआ के घर जाना है तो किसी को छुट्टी में सैर सपाटे पर निकलना है।
बच्चे तो छुट्टियोंसे खुश हो जाते है, लेकिन आरक्षण की प्रतीक्षा सूची देख दिमाग़ चकरा जाता है। क्या करे? वेटिंग टिकट ले ले क्या? या तत्काल में ट्राई करें? 4 महीने पहले वेटिंग की टिकट गाड़ी छूटने के दिन तक भी वहीं की वहीं रहती है, मानो पत्थर की लकीर हो। तत्काल तो जैसे आकाल है, भाई किसके नसीब में कहाँ बरसता है, भगवान ही जाने।
देखिए, कुछ जानकारीया आपको देते है, ताकी आप समझे, कौनसा वेटिंग टिकट सही है। जब सारी कन्फर्म टिकट बुक हो जाती है तो RAC वाली बुकिंग शुरू होती और उसके बाद वेटिंग वाली। अब कन्फर्म तो कन्फर्म ही है, पक्का नम्बर मिल जाता है और RAC में आपको सीट नम्बर मिलता है जो यह बताता है की आप गाड़ी में चले आइए, जैसे ही कोई बर्थ की बुकिंग रदद् होती है, आप उसके सबसे पहले दावेदार है।
जो वेटिंग टिकट होती है, उसके तीन प्रकार होते है। पहला GNWL, दूसरा PQWL और तीसरा RLWL। अब थोड़ा ध्यान दे, जो GNWL वेटिंग होती है न वह होती है सबसे मुख्य वेटिंग लिस्ट, याने जनरल वेटिंग लिस्ट। यह वेटिंग टिकट सबसे तेज दौड़ती है। आप इस पर काफी हद तक भरोसा कर सकते है की कन्फर्म हो जाए। यह वेटिंग लिस्ट, जहाँ तक गाड़ी के स्टार्टिंग स्टेशन से गाड़ी के गंतव्य तक वाले टिकटों की होती है या कम यात्रा वाली भी हो सकती है बशर्ते यात्रा गाड़ी के शुरू के स्टेशन से शुरु होती हो।
दूसरी वेटिंग टिकट है, PQWL यह होती है पुलिंग कोटा वेटिंग लिस्ट याने स्टार्टिंग स्टेशन से शुरू होने वाली या गाडीके महत्व के पहले पड़ाव से शुरू होने वाली और कुछ दूरी की यात्रा वाली टिकट या गन्तव्य तक की टिकट। यह वेटिंग टिकट भी GNWL की छोटी बहन ही है। सबसे पहले GNWL को कंफरमेशन की प्रधानता है, उसके बाद इस वेटिंग वालो की टिकटे कन्फर्म होना शुरू होती है।
तीसरी वेटिंग टिकट है, RLWL, रिमोट लोकेशन वेटिंग लिस्ट। भैया इस वेटिंग टिकट के कन्फर्म होने का तो आप इंतजार ही करते रह जाओगे। कन्फर्मेशन का सबसे कम चान्स रहने वाली टिकट। यह टिकट रास्ते मे पड़ने वाले बड़े जंक्शन स्टेशनोंको दिए जाने वाले कोटे की टिकट है, जो की बड़ी मुश्किल से सरकती है।
अब आप समझ गए होंगे, यदि कन्फर्म टिकट उपलब्ध नही है तो क्या करना है? भाईसाहब, आजकल लगभग सभी लोग e-ticket बना सकते है तो जहाँसे GNWL टिकट मिल रही है, उसे चेक करो और लो। वेटिंग टिकट लेना ही पड़े तो फर्स्ट चॉइस GNWL वेटिंग टिकट रखो और खास बात टिकट बनाने के बाद अपना बोर्डिंग स्टेशन बदलना है, टिकट लेते वक्त ही बोर्डिंग स्टेशन नहीं बदलना है अन्यथा जो टिकट जनरेट होगी वह PQWL या RLWL निकलेगी। साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना है की बोर्डिंग बदलनेका पर्याप्त समय आपके पास है या नही।
तो अब स्मार्ट बन जाए और वेटिंग टिकट में भी कंफरमेशन की संभावनाएं बढ़ाए।
(Photo credits : Paperboat Drinks.)
Today i.e. on 19th of February 2019, PM Modi flagged of India’s First Diesel and Electrical combined locomotive from Varanasi.
Sharing with all the poem he had penned on 8.11.2014 about his involvement with Indian Railways.
चार महीने पहले, लम्बी कतारोमे, धक्के खाते, आरक्षण कन्फर्म करवा के आखिर वो यात्रा की शुभ घड़ी आ ही गई थी की हम इलाहाबाद के कुम्भ स्नान का पुण्य अपने गांठ बांध लें।
गाड़ी पुणे स्टेशन से दोपहर सवा चार बजे छुटने वाली थी। तीर्थयात्रा जाना था, बड़े बूढ़े कहते है बारवास में सकून देखना चाहिए पैसे नही, तो कैब बुलवा ली और पहुंच गए स्टेशन। हालाँकि कुम्भ में शाहीस्नान के पर्व की तिथि तो नही थी पर पुणे स्टेशन की भीड़ देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे सभी को हमारे साथ ही पूण्य अर्जित करने की सूझी है।
पौने चार बजे गाड़ी स्टेशनपर लगी, तो क्या जनरल डिब्बे और क्या आरक्षित शयनयान डिब्बे। भीड़ तो ऐसे उमड़ी की जैसे लंगर लगा हो। हम भी हो लिए, हमारे डिब्बे एस 4 की ओर। बड़ी जद्दोजहद के बाद डिब्बे में घूंसे, अपने बर्थ तक पहुँचे, तो हमारी दोनोंही लोअर बर्थ पर 6 – 6 लोग पहलेसे ही जमे थे। अब वार्तालाप देखिए, हमने कहा, “भाई यह हमारे रिजर्वेशन है, हमे बैठने दीजिए।” अपने पाँव मोड़ कर के, आगे पीछे खिसक के, सलाह मिली, “लीजिए, आप बैठ जाइए। रिजर्वेशन टिकट तो हमारे भी है, बस कन्फर्म नही हुए वेटिंग में है।” अब पूरी डिब्बे की भीड़ के सामने हम विलेन बने, ” ये सिट मुझे दे दे ठाकुर” वाली स्टाईल में गब्बर की तरह दिखाई दे रहे थे और सैंकड़ों जय, वीरू और बसंतियाँ हमे घूर रही थी। जाना तो सभी को इलाहाबाद, वाराणसी। खैर! अब शुरू हुआ एडजस्टमेंट वाला खेल। गाड़ी चल पड़ी तो थोड़े सरको, जरा खिसको, थोड़ा बैठो और सेट हो जाओ।
गाड़ी चले, 4 घंटे हो चुके थे। टिटी साहब का कोई अतापता नही था। हमें भरोसा था, बाबूजी आएंगे और बिना रिजर्वेशन वालोंसे हमारी जगह ख़ाली करवा देंगे। अब तो हमारी बेगम भी हमे अपनी आंखें दिखाने लग गई थी। शाम ढलते ढलते, वैसी ही भीड़भाड़ मे हमने अपना टिफिन निकाला और खाना खा लिए। रात के 10 बज गए, ” भाई, अब हम सोएंगे, बर्थ खाली कर दो” थोड़े लोग इधर उधर हो गए, जगह बनाई गई और श्रीमतीजी मिडल बर्थ पर और हम निचले बर्थ पर लेट गए। बड़ी मुश्किल से नींद आई, अचानक हमारे पैर किसी भारी वजन से दब गए। हड़बड़ाकर उठने हुए तो हमारे बगल में हमारी बर्थ पर एडजस्ट हुवा एक बन्दा दन से नीचे गिरा, उसको सम्भालते तब तक जो पैर पर का बोझा भी लुढक़ चुका था। बड़ाही हडक़म्प मच गया। क्योंकि जहाँ ये लोग गिरे वहाँ भी लोग हाथ पैर पसारे चित हुए पड़े थे। ” ऐ काका, शांती से सोते रहा, काहे उठत रहे?” इधर हम अपने दबे पैरों का दर्द सहते बोले, ” भैया, हमारा बर्थ …..” अरे चाचा, आप ही तो सोये है, तनिक टिक लिए तो कौन तकलीफ़ हो गई? रात का समय है, आँख लग गई, तो थोड़ा सा…., और वैसे भी सुबह होने को है। आप पूरी रात सोए हो, अब हम भी थोड़ा सो ले?”
हम सोच रहे, हमारा कहाँ चूक हो गया, शायद स्लिपर क्लास में रिजर्वेशन कराने में? वातानुकूलित डिब्बे में एडजस्ट वाला खेला नही होता।