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भारतीय रेल में आम यात्री के लिए सुनहरा काल

07 अगस्त 2023, सोमवार, अधिक श्रावण, कृष्ण पक्ष, सप्तमी, विक्रम संवत 2080

भारतीय रेल! हमारे देश का नैशनल कैरियर! हम आम लोगोंके लिए किफायती, सुरक्षित यातायात का प्रमुख साधन। उपनगरीय यात्रिओंको जोड़े तो किसी पश्चिमी देशोंकी समूची लोकसंख्या गिन लीजिए, इतने यात्रिओंकी एक दिन की ढुलाई, हमारी भारतीय रेल में होती है। क्या देश की प्रचण्ड लोकसंख्या इसका कारण है या भारतीय रेल के अत्यंत किफायती किराए यात्रिओंको रेल यात्रा करने के लिए आकर्षित करते है?

किसी नतीज़े पर पहुंचने से पहले और चर्चाको आगे बढाते है। भारतीय रेल में उपनगरीय गाड़ियाँ छोड़, देश की लम्बी दूरी की रेल यात्राओंको समझते है। इन गाड़ियोंमे सबसे महंगा टिकट वातानुकूल प्रथम श्रेणी का है और सबसे सस्ता द्वितीय श्रेणी का। इसी दायरे में टिकट की तमाम श्रेणियाँ, विभिन्न प्रकार की प्रीमियम, राजधानी, शताब्दी, नवावतारित वन्देभारत, जनशताब्दी, सुपरफास्ट, मेल/एक्सप्रेस और मेमू एक्सप्रेस गाड़ियाँ सम्मिलित है। चूँकि सवारी गाड़ियाँ संक्रमण काल मे बन्द हुई तो फिर आजतक चली ही नही। नही तो ग़ैरउपनगरीय क्षेत्र की सबसे सस्ती द्वितीय श्रेणी टिकट का तमगा उससे न छीन पाता। घनघोर आश्चर्य की बात है, देश की सबसे लम्बी चलनेवाली कन्याकुमारी – डिब्रूगढ़ विवेक एक्सप्रेस जो 4153 किलोमीटर यात्रा करती है, उसके बाद दूसरे क्रमांक की तिरुवनंतपुरम – सिल्चर अरुनोई एक्सप्रेस जो 3915 किलोमीटर चलती है, जिनके एण्ड टु एण्ड यात्रा में चार – चार दिन लग जाते है, उनमें भी द्वितीय श्रेणी साधारण टिकट भारतीय रेल में उपलब्ध है। इन सब बातों के दौरान हमारी रेल यात्री के स्वर्णिम काल की बात तो पिछे रह गई, चलिए लौटते है,

हमारी रेल में 3 प्रकार के यात्री होते है, रोजाना यात्रा करनेवाले, जिनमे बहुतसे यात्री उपनगरीय गाड़ियोंमें यात्रा करते है और इनके पास मासिक/त्रिमासिक (MST/QST) टिकट होता है। दूसरे फ्रिक्वेंट ट्रेवलर अक्सर रेल यात्रा करने वाले यात्री। जो अमूमन महीने – दो महीने में रेल यात्रा करते है। तीसरे कभीकभार यात्रा करनेवाले पर्यटक या कारणवश यात्रा करनी पड़े ऐसे रेल यात्री। इन फ्रिक्वेंट ट्रैवलर या नियमित यात्रा करनेवाले लोगोंकी चर्चा में भारतीय रेल में आम यात्रिओंका स्वर्णिम काल, संक्रमण के बाद जो ‘केवल आरक्षित यात्री’ बन्धन में यात्री गाड़ियाँ चल रही थी, वह था। है न, आश्चर्यभरी बात!

इसके लिए हमें आजकल भारतीय रेल के 90 फीसदी गाड़ियोंमे जो धान्दली चल रही है, उसे समझना होगा। रेल गाड़ियोंकी संरचना मानकीकरण के नामपर द्वितीय श्रेणी साधारण कोचों की कटौती, यात्री सुविधाओं की निगरानी रखनेवाले TTE चल टिकट निरीक्षक की कमी, और स्लिपर क्लास के रद्द नही किये गए प्रतिक्षासूची वाले काउंटर टिकट धारी यात्री, कम अन्तर यात्रा करनेवाले नियमित मासिक पास धारक और अनारक्षित टिकट धारक यात्री तमाम लोग बड़ी बेदरकारी से आरक्षित स्लिपर कोच और वातानुकूल थ्री टियर में धड़ल्ले से घुस कर यात्रा करने वाले यात्री। आज की ताजा ख़बर है, हावडा – चेन्नई मेल के आरक्षित कोच के यात्रिओंने खड़गपुर स्टेशनपर कोच में घुसे अनारक्षित यात्रिओंको निकाल बाहर करने तक गाड़ी को रोके रखा। यह गाड़ी खड़गपुर स्टेशनपर 4 घण्टे खड़ी रही।

आज कल की रेल गाड़ियोंकी स्थिति

यह सारी धान्दली, संक्रमण काल मे और बाद के लगभग 1 वर्ष तक बिल्कुल बन्द थी। केवल अग्रिम आरक्षण प्राप्त यात्री ही स्टेशन के अहाते में आ सकते थे। साधारण टिकट पूर्णतः बन्द कर दिए गए थे। अनारक्षित यात्रिओंके लिए रेलवे स्टेशन और तमाम यात्री गाड़ियाँ बन्द थी। सारे द्वितीय साधारण कोच में 2S आरक्षित द्वितीय सिटिंग के भाँती बुकिंग्ज की जा रही थी। तमाम मेल, एक्सप्रेस, सुपरफास्ट गाड़ियोंमें जितनी बुकिंग बस उतने ही यात्री यह माहौल था। केवल आवश्यकता पड़नेपर ही यात्री टिकट आरक्षित कर रेल यात्रा के लिए स्टेशनोंपर पहुंच रहा था। इस काल को यह लोग आम यात्रिओंके लिए स्वर्णिम काल कह रहे है।

मित्रों, यहॉं आपको निश्चित ही हैरानी लग रही होगी, बन्धनोंमें रहकर रेल यात्रा स्वर्णिम काल कैसे हो सकती है? क्या आरक्षित कोच में अनारक्षित यात्रिओंका यात्रा न करना यह उस संक्रमण काल का ही नियम था, पूर्वचलित न था? क्या MST धारक की स्लिपर क्लास में यात्रा करने की अनुमति है? क्या काउंटर का छपा टिकट वेटिंग लिस्ट में रह जाये तो भी आरक्षित श्रेणी में यात्रा कर सकता है? नहीं ना? फिर अब क्यों यह लोग नियमोंको ताक पर रख धान्दली मचा रहे है? क्यों रेल के टिकट जाँच दल, रेल्वेके अधिकारी अनाधिकृत यात्रिओंको दण्डित नही करते है? संक्रमण काल मे जो यात्री अनाधिकृत थे वे अब भी अनाधिकृत ही है। बस, फर्क यह है, लोगोंको नियमोंको ताक पर रखने की आदतसी हो गयी है। रेल विभाग को अपने वर्षोँ चले ढर्रों पर कायम है। हजारों किलोमीटर की साधारण टिकटें जारी कर ही रही है। अब भी काऊंटर्स की प्रतिक्षासूची में रह जानेवाली टिकट को बिना टिकट मान कर दण्डित करने में लापरवाही बरती जा रही है।

अब रेल प्रशासन को अपने आदि-अनादि काल के नियमोंको बदलने का वक्त आ गया है। कोई यात्री गाड़ी 500 किलोमीटर से ज्यादा यात्रा करनेवाली है, उसे सम्पूर्ण आरक्षित गाड़ी कर चलाया जाना चाहिए। इसके साथ ही 500 किलोमीटर से कम अन्तर की इंटरसिटी गाड़ियाँ, 250 किलोमीटर से आसपास अन्तर चलनेवाली अनारक्षित डेमू/मेमू गाड़ियोंकी समुचित व्यवस्था करना चाहिए। मासिक पास, द्वितीय अनारक्षित टिकट केवल इंटरसिटी और कम अन्तर वाली डेमू/मेमू तक ही सीमित होना चाहिए। MST टिकट में सड़क पर लगनेवाले टोल नाकोंकी तरह दखल ली जाए। यह जो भी स्टेशन डेवलपमेंट योजनाओं के अंतर्गत स्टेशनोंपर आगमन, एन्ट्री पॉइंट पर भी यात्री टिकट, पास चेक हो और अधिकृत व्यक्ति ही रेल आहाते में आए। यह इतनी सी अपेक्षाओंकी पूर्तता होती है तो भारतीय रेल सदा के लिए अपने यात्रिओंके लिए स्वर्णिम काल लेकर आएगी।

Photo courtesy : http://www.indiarailinfo.com

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