11 अक्तूबर 2023, बुधवार, आश्विन, कृष्ण पक्ष, द्वादशी, विक्रम संवत 2080
रेल विभाग अपने आरक्षित टिकट रद्दीकरण हेतु कई पर्याय देता है। जैसे गाड़ी रद्द हो गयी, मार्ग परिवर्तन में यात्री का स्टेशन अंतर्भूत नही, गाड़ी तीन घण्टे से ज्यादा देरी से चल रही है इत्यादि। इसमे भारतीय रेल एक पर्याय अवश्य जोड़ लें, अत्याधिक भीड़ के चलते यात्री गाड़ी में सवार न हो पाया।

रेल प्रशासन आजकल लगातार अपनी गाड़ियोंका LHB करण कर रहा है। बढ़िया है, आधुनिक है, उच्च गति परिचालन क्षमता में सक्षम कोच है मगर गाड़ी संरचना के नाम पर ग़ैरवातानुकूल कोच जिसमे स्लिपर, शयनयान और जनरल सिटिंग द्वितीय श्रेणी के कोच आते है,बमुश्किल एक यात्री गाड़ी में गिनती के 2-2 कोच रह गए है। वहीं टिकटोंके आबंटन पर किसी तरह का कोई लगाम, पाबन्दी नही है। हजारों द्वितीय श्रेणी के टिकट बेचे जाते है। जिन पर किसी विशिष्ट गाड़ी में बैठने का बन्धन नही होता।
दूसरा ग़ैरवातानुकूल वर्ग है शयनयान स्लिपर, जिसमे सीटे तो 120 दिन पहले टिकटोंको आबंटन शुरू होते ही लगभग सभी गाड़ियोंमें प्रतिक्षासूची, वेटिंगलिस्ट शुरू हो जाती है। वेटिंग लिस्ट के हजार, पन्ध्रह सौ टिकट बंटने के बाद ‘नो रूम या नॉट अवेलेबल” लेबल आ जाती है। इसका मतलब उस आरक्षित शयनयान श्रेणी में यात्री को वेटिंग टिकट भी नही मिलेगा। ऐसे में केवल द्वितीय श्रेणी साधारण टिकट का पर्याय यात्री के पास रह जाट्स है, जो यात्रा करने के तिथि को या ज्यादा से ज्यादा 3 दिन पूर्व अग्रिम टिकट नियम मे लिया जा सकता है। साधारण टिकट के साथ यात्री स्लिपर क्लास में किस तरह यात्रा करता है, उसका गड़बड़झाला आपके सामने रखते है।
मित्रो, बहुतांश यात्री स्टेशनोंपर साधारण टिकट लेकर पहुंचते है। उन्हें स्लिपर क्लास की आरक्षित टिकट नहीं मिल पाई और न ही वह साधारण द्वितीय वर्ग में यात्रा कर अपने परिवार को साथ लेकर यात्रा कर पाने में सक्षम होता है। फिर… फिर शुरू होता एक ऐसा भद्दा खेल, रेल कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ती, जो दिखती सभी को है, आरक्षित यात्री उसे भुगतता भी है मगर रेल विभाग के मंत्रियों से लेकर विभाग के अफसर, कर्मी, सुरक्षा बल सारे के सारे आँख मुन्द लेते है।

मध्य रेल का पुणे स्टेशन, यहाँपर उत्तर भारत की गाड़ियोंके लिए टिकट जाँच कर्मियों द्वारा, ‘विशेष स्लिपर क्लास एन्ट्री’ अभियान चलाया जाता है। गाड़ी प्लेटफार्म पर लगते ही इन लोगोंके चलते-फिरते अधिकृत(?) बुकिंग काउंटर्स शुरू हो जाते है। एक हाथ में रसीदों की किताब, दूसरे में पेन और जबान पर “चलिए, किस को रसीद काटनी है?” व्वा! क्या योजना है भारतीय रेल की, गजब! तुरन्त ही साधारण टिकट धारकोंका जमावड़ा उनके अगलबगल जमा हो जाता है। और किसी को यकीन नहीं आएगा, प्लेटफार्म पर खड़े खड़े साधारण टिकट को पेनाल्टी, दण्ड, जुर्माने की रसीद कटती है, की यात्री अनुचित टिकट के साथ यात्रा करते पाया गया। भाईसाहब, यही तो परमिट है, अनुमतिपत्र है स्लिपर क्लास में बेखटके सवार होकर यात्रा करने का। उन्हें बाकायदा रेल नियमोंको धता बताकर स्लिपर कोचेस में लाद दिया जाता है। स्लिपर कोच में दो बर्थ के बीच की जगह, पैसेज, टॉयलेट एवं बेसिन के पास की जगह, वेस्टिब्यूल की जगह सब ऐसे यात्रिओंसे भर दी जाती है। पेनाल्टी रसीद लहराते वह यात्री स्लिपर क्लास में इस तरह चढ़ता है जैसे उसने इस रेल को खरीद लिया हो और उसे पूरी यात्रा के लिए आश्वस्त भी किया जाता है। लगभग इसी तरह का रसीद वाला परमिट मध्य रेल के सभी टिकट चेकिंग पॉइंट्स पर जाँच दल द्वारा चलता है।
इन अतिरिक्त यात्रिओंके घुसपैठ की बेतहाशा तकलीफ महीनोंपहले या तत्काल, प्रीमियम तत्काल का अतिरिक्त मूल्य देकर खरीदें आरक्षित टिकट धारकोंको होती है। टॉयलेट के उपयोग करने में परेशानी। महिला यात्रिओंको कितनी असुविधा का सामना करना पड़ता है, यह सोचना भी कठिन है। इस सबके लिए सिर्फ रेल प्रशासन जिम्मेदार है और जिम्मेदार है, निर्णयशून्य आँख मूँदे बैठे तीन-तीन रेल मन्त्री जिसमे एक महिला मन्त्री भी है, अधिकारी गण जिन्हें केवल पेनाल्टी कलेक्शन के शिखर हासिल करना है।
ई-टिकट चार्ट बनने के पश्चात रद्द हो जाता है, वेटिंग लिस्ट टिकट धारक का नाम चार्ट में नही आता और धनवापसी भी हो जाती है। वहीं वेटिंग लिस्ट काउंटर टिकट में PNR भले ही ड्रेन, रद्द हो जाए मगर धनवापसी नही होती और यह समझ लिया जाता है, की यात्री साधारण वर्ग से यात्रा कर रहा है। जबकि वह यात्री स्लिपर क्लास में सवार हो जाता है और आरक्षित यात्रिओंकी सीटों पर एडजस्ट करते हुए अपनी यात्रा करता है। जब तक स्लिपर क्लास में इस तरह के अतिरिक्त यात्री चलते रहेंगे, टिकट जाँच दल का रसीद जुगाड़ भी चलता रहेगा।
रेल विभाग को चाहिए, केवल ई-टिकट व्यवस्था में ही वेटिंग लिस्ट टिकट का आबंटन किया जाए और काउन्टर PRS टिकट व्यवस्था में वेटिंगलिस्ट टिकट बिल्कुल नही दिया जाना चाहिए। दण्ड की रसीदें डिजिटल होनी चाहिए, जिसमे रसीद काटने का समय टिकट के भाँति ही, बुकिंग टाइम अंकित होता है, उसी प्रकार छपा जाए। इससे प्लेटफार्म पर चलने वाले जुगाड़, रसीदी काउंटर्स पर कुछ तो बन्धन आ ही जायेंगे और जाँच दल को प्लेटफार्म बिजिनेस की जगह, गाड़ी में यात्रा करते हुए टिकटोंकी जाँच करनी होगी। दूसरी बात, दण्ड की रकम जब यात्री को दण्ड जैसी लगती ही नही और वह खुद आकर बोलता है, वह अपराध करने जा रहा है उसे दण्ड करें और रसीद दें ताकि वह स्लिपर में चढ़ सके। 😊 जाहिर सी बात है, दण्ड की रकम ₹250/- बढ़ कर ₹1000/ या ₹2000/- हो, जिससे यात्री को दण्ड देने का, दण्डित होने का डर लगे।
यह बहुत बुरी बात है, की इतनी अनियमितता रेल अफ़सरोंके नाक के सामने, प्लेटफार्म पर चलती रहती है और बजाय उन्हें अपने तरीके को बदलना कहने की जगह उच्च राजस्व जमा कराने के उपहार दिए जाते है, अभिनंदन किया जाता है। जहाँतक हमारा मानना है, यदि दिन-ब-दिन रेल विभाग के जाँच दल का कलेक्शन बढ़ रहा है, तो सहज बात है, की आपकी टिकट बुकिंग सिस्टम में गड़बड़ी है। आपके नियमोंका, कानून का यात्री पालन नहीं करते, नियमोंको धता बताकर यात्रा करते है, उन्हें दण्ड भरना आसान, सरल लगता है, तो रेल विभाग को चाहिए, नियमों को और कड़े करे, दण्ड में बदलाव करें।
