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कब तक करोगे अनदेखी सामान्य वर्ग के रेल यात्रिओंकी…?

04 नवम्बर 2023, शनिवार, कार्तिक, कृष्ण पक्ष, सप्तमी, विक्रम संवत 2080

भारतीय रेल, जिसमे सामान्य तबके का 95% यात्री, रेल यात्रा करता है, आज बेहद आक्रोशित अवस्था मे है। देश की अमूमन सभी लम्बी दूरी की मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमें तीन चौथाई ग़ैरवातानुकूल कोच हटा दिए गए है, उन्हें वातानुकूल कोचोंमे बदल दिया गया है या बदला जा रहा है।

फाइल चित्र : indiarailinfo.com के सौजन्य से

एक चुभता वाक्य जो रेल प्रशासन प्रत्येक आरक्षित टिकट पर छापती है, ‘उपरोक्त टिकट में 57% किराया ही लिया गया है” क्या किसी माई के लाल ने इस लानत भरे वाक्य पर कभी कोई शिकायत, आपत्ति या इसे हटाने के बारे मे किसी प्रकार की चेष्टा की है?
🤦‍♂️

इसको हटाने अर्थ समझते है आम रेल यात्री? सभी श्रेणियों में सीधे डेढ़ गुना वृद्धि, जिसे राजनियिकोंने अपनी राजनीतिक लालसाओं के लिए(?) वर्षोँसे रोके रखा है और अब रेल विभाग के यात्री मद से आमदनी की ऐसी हालत है, की यात्रिओंपर किरायावृद्धि का कहर सामान्य यात्री पर कभी भी टूट सकता है। एक तरफ सवारी गाड़ियोंको एक्सप्रेस श्रेणियों में चलाना, वरिष्ठ नागरिकों की छूट को पुनर्स्थापित न करना, समयसारणी में मामूली सा बदलाव कर सामान्य मेल/एक्सप्रेस को सुपरफास्ट बना देना, यह सब क्या है? आखिर कब तक … कब तक ऐसे खोखले उपायोंसे रेल विभाग का पेट भरेगा? और कितने दिनोंतक इस तरह की छुपी, अनुर्वर, अनुत्पादक किरायावृद्धि को रेल यात्री सह पाएगा?

किसी भी इकाई में जब उसका कोई भाग अनप्रोडक्टिव अर्थात नुकसानदेह होते चला जाता है तो सारी कायनात (😉) यहॉं रेल विभाग के विचारवन्त धुरिण, उसकी तोड़ निकालने में जुट जाती है। शायद यही वजह है द्वितीय श्रेणी, ग़ैरवातानुकूल श्रेणी के यात्रिओंकी अनदेखी हो रही है। द्वितीय और ग़ैरवातानुकूल वर्ग के कम किराए रेल प्रशासन को अन्दर तक खल रहे होंगे, गले की फाँस बन गए होंगे तभी तो उसकी किसी समस्या, परेशानी की ओर वह सुलझाने की दृष्टि से देख ही नही रहे है और विशेष गाड़ियों, सुविधा ट्रेनों या डिस्टेन्स रिस्ट्रिक्शन जैसे बाईपास किरायावृद्धि के उपाय लाए जाते है। दूसरी ओर जनरल में 100 की जगह 300 लोग यात्रा करते है तो करें, स्लीपरों में अनारक्षित यात्री घुसते है तो घुसे अपनी बला से। जब आय ही नही है अपितु अन्य मदों से आया उत्पन्न वहॉं लगाना पड़ रहा है तो रेल प्रशासन उस की किसी गुहार को सुनती ही नही है। स्लिपर क्लास की यह हालत है, 80 आरक्षित यात्रिओंके साथ कई कई अवैध, अनारक्षित यात्री, विक्रेता यूँ ही चलते रहते है और रेल विभाग क्या करता है, जो बेचारा परिवार सहित चलनेवाला, खुद को बेइज्जती से बचाने वाला यात्री है, उससे दण्ड वसूल कर रही है, पेनाल्टी के नए कीर्तिमान बना रही है। जब की उसकी किसी तरह की कोई मदत तो कर ही नही रही।

अंत्योदय, हमसफ़र, राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस का नियमित मेल/एक्सप्रेस के समकक्ष श्रेणी के आधार किरायोंसे 1.15 गुना (15% अधिक) है। जन शताब्दी में नियमित मेल/एक्सप्रेस बेस किराया से 1.05 गुना (5% अधिक) है। ‘ट्रेन ऑन डिमांड’ का नियमित मेल/एक्सप्रेस आधार किराया से 1.3 गुना (30% अधिक) है और इन गाड़ियोंमे न्यूनतम प्रभार्य दूरी भी अधिक होती है! इस तरह अलग अलग किराया श्रेणी का खेल रेल विभाग अब बन्द करे। सीधी सी बात है, कुछ कठोर कदम और जनता का साथ मिले तो ही इन ग़ैरवातानुकूल श्रेणियों का उद्धार सम्भव है। किराया वृद्धि जो भी हो, सीधे कराई जाए। सामान्य मेल/एक्सप्रेस और महामना एक्सप्रेस में क्या अंतर है या हमसफ़र के वातानुकूल थ्री टियर अन्य मेल/एक्सप्रेस के वातानुकूल थ्री टियर से कितने अलग है? सिवा कुछ स्टापेजेस के मामुली फर्क से इनके किराए अलग किराया श्रेणी बनाकर असामान्य हो जाते है। सामान्य यात्रिओंकी समझ से बिल्कुल परे है यह खेल। उस बेचारे को रेल विभाग का यह गुणा-गणित समझ ही नही आता।

स्लिपर क्लास या कोई भी अन्य ग़ैरवातानुकूल श्रेणी हो उसे पुनः एक विशेष आरक्षित श्रेणी, या जो भी उस का गौरव हो, लौटाया जाए। सभी आरक्षित कोच में अनिवार्य रूप से रेल कर्मचारियों की उपस्थिति हो ताकि अवैध यात्रिओंकी आवाजाही पर रोक लगे।

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