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लिंक ट्रेन्स, स्लिप कोचेस के बाद अब गाज़ गिरेगी ‘जंक्शन्स’ पर!

13 जनवरी 2024, शनिवार, पौष, शुक्ल पक्ष, द्वितीया/तृतीया, विक्रम संवत 2080

भारतीय रेल, एक अलग सोच के साथ आगे बढ़ी जा रही है। सारे बन्धन, सम्पर्कता के वादे गति अवरोधिता के निकष पर खारिज किये जा रहे है।

भारतीय रेल की बुनियाद ब्रिटिश काल मे हुई थी। जो जो रेल संचालन संकल्पनाएं ब्रिटीशोंके द्वारा बनाई गई थी, एक एक कर के बदली जा रही है। भारतीय रेल नई संकल्पानाओं के साथ, गतिमानता का उद्देश्य रखते हुए अग्रेसर है।

भारतीय रेल कहिए या किसी भी रेल प्रणाली में जंक्शन स्टेशन का बड़ा महत्व रहता है। जंक्शन स्टेशन वह रहता है, जहाँ से मुख्य रेल मार्ग के अलावा एक या एक से ज्यादा अलग रेल मार्ग निकलता है, शुरू होता है। यह जंक्शन स्टेशन यात्रिओंको या माल परिवहन को अलग अलग मार्ग पर जाने की सुविधा प्रदान करते थे। यात्री मुख्य मार्ग से यहाँ आकर अलग मार्ग की गाड़ी में सवार होते थे। इस हेतु को पूर्ण करने के लिए स्लिप कोचेस या लिंक ट्रेन्स भी चलाई जाती थी। जिसमे यात्री को अपनी रेल यात्रा खंडित किए बगैर सीधी सम्पर्कता मिलती थी। भारतीय रेलवे ने बीते 3, 4 वर्षोँसे सारी लिंक ट्रेन्स, स्लिप कोचेस सेवाएं बन्द कर दी और इसके ऐवज में सीधी यात्री सेवाए, यात्रिओंके जरूरत के अनुसार प्रतिदिन या साप्ताहिक फेरोंके स्वरूप में चला दी।

रेल प्रशासन की इसके पीछे यह मंशा थी, यात्री गाड़ियोंकी शंटिंग में रेल प्रणाली में जो अवरोध बनता है, यात्रिओंका और रेल गाड़ियोंका जो समय ज़ाया होता है उससे बचा जाए और रेल विभाग इसमे सफल भी हुवा है। सम्पूर्ण विद्युतीकरण के चलते आजकल लोको भी बदलने की झंझट खत्म हो गई है।

रेल विभाग लगातार यह प्रयास करता है, किस तरह रेल मार्ग से अधिकतम गाड़ियाँ बिना अवरोध के कम से कम समय मे निकाली जाए। ऑटो सिग्नलिंग व्यवस्था भी इसी परियोजना का एक भाग है। यात्रा के दौरान कोचेस की टँकीयोंमें पानी भी आजकल तीव्रतम गति से भरने की आधुनिक व्यवस्थाए की गई है। गाड़ियोंका परीक्षण लेजर यन्त्रोंसे किया जाता है ताकि मैन्युअल परीक्षण में जो समय लगता है, वह भी बचाया जाए।

इसी उद्देश्य की अगली कड़ी है, बड़े शहरों और जंक्शन स्टेशन्स पर होनेवाले कन्जेशन, भीड़ को टालने के लिए इन स्टेशनों को सड़क मार्गोंके रिंग रोड या बाईपास मार्ग की तरह रिंग रेल या बाईपास ट्रैक्स बनाए जाए। अर्थात कोई यात्री गाड़ी को उक्त जंक्शन स्टेशन पर किसी तकनीकी वजह से जाने की आवश्यकता नही है तो उसे रिंग रेल या बाईपास ट्रैक से निकाल कर फिर मुख्य मार्ग पर ले आना और आगे मार्गक्रमण के लिए रवाना कर देना, यह है। इसमे बड़े स्टेशनोंके बाहरी, आगे और पीछे के छोटे स्टेशनोंसे एक दूसरे से जोड़ने वाले रेल मार्ग को बिछाना होगा। उदाहरण के तौर पर भोपाल, भुसावल, दौंड, इटारसी, कटनी ऐसे बहुत से स्टेशन है जहाँपर बाईपास लाइनें बिछ चुकी है।

रिंग रेल यह संकल्पना बड़े महानगरों के लिए लाई जा रही है। जिसमे जयपुर शहर को सर्वप्रथम चुना गया है। जयपुर स्टेशन के निकटतम छोटे स्टेशनोंको जोड़कर एक रिंग रेल बनाई जाएगी और आवश्यकता नुसार उसका उपयोग किया जाएगा। इससे बहुत सी सीधी चलनेवाली गाड़ियाँ जयपुर के मुख्य रेलवे स्टेशन के बजाए उसके अगले/पिछले स्टेशन से ही गुजर कर अपना मार्गक्रमण कर लेगी। इससे जयपुर स्टेशन पर होनेवाली भीड़ और गाड़ियोंके होने वाले अवरोध को टाला जा सकता है।

एक तरह से जैसे स्लिप कोचेस, लिंक ट्रेन्स का अस्तित्व मिट गया है उसी तरह से अब जंक्शन स्टेशन की संकल्पना भी धीरे धीरे खत्म हो जाएगी। एक और उदाहरण दिया जा सकता है, जैसे इन्दौर जंक्शन पर मुख्य रेल मार्ग के अलावा कोई ब्रांच लाइन नही है, अपितु लक्ष्मीबाई नगर से ब्रांच लाइन निकलती है। यदि लक्ष्मीबाई नगर स्टेशन को इन्दौर स्टेशन के अगले स्टेशन राजेंद्रनगर या राउ से रिंग रेल बनाजर जोड़ दिया गया तो इन्दौर जंक्शन पर कन्जेशन नही रहेगा। यही तकनीक से नागपुर स्टेशन के पहले पड़नेवाला अजनी और बाद में पड़नेवाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस इतवारी स्टेशन को जोड़ने से नागपुर स्टेशन पर पड़नेवाले दबाव से निपटा जा सकता है। मगर जो बात, जो उद्देश्य, महत्व जंक्शन स्टेशनोंका था वह इस रिंग रेल, बाईपास ट्रैक बनाने की योजना से सदा के लिए खत्म हो जाएगा।