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वन्देभारत vs गरीबों की रेल

09 अगस्त 2023, बुधवार, अधिक श्रावण, कृष्ण पक्ष, नवमी, विक्रम संवत 2080

मित्रों, वैसे हम विशुद्ध रूप से, सिर्फ और सिर्फ रेल सम्बन्धी ख़बरोंसे जुड़े हुए है, हमारे ब्लॉग को किसी राजनीति से कोई लेनादेना नही। मगर दिनोंदिन एक बात हमारे मन मे कौंध रही है, नई और बहुचर्चित वन्देभारत एक्सप्रेस पर मीडिया, सोशल मीडिया में दी गयी विशेष तवज्जों और वह भी अलग नज़रिए वाली। जैसे की वन्देभारत एक्सप्रेस से मवेशी कटे, वन्देभारत लोको का चेहरा बिगड़ा, वन्देभारत एक्सप्रेस पर पत्थरबाजी, वन्देभारत एक्सप्रेस का फलाना नुकसान हुवा इत्यादि।

क्या यह, वन्देभारत vs गरीबों की रेल ऐसे नैरेटिव, रिवायत बनाने का एजेन्डा चलाया जा रहा है? क्या आज से पहले देश मे कभी कोई वातानुकूलित या प्रीमियम गाड़ी नही चलाई गई है? देश की पहली सम्पूर्ण वातानुकूलित नई दिल्ली हावडा राजधानी सन 1969 में चली थी और आज भारतीय रेल का गौरव है। वातानुकूलित कुर्सी यान वाली शताब्दी एक्सप्रेस 1988 से चलाई जा रही है। हालांकि यह गाड़ियाँ सर्वप्रथम चली तब भी देश में इनको कड़ी आलोचना का शिकार होना पड़ा। देश को ऐसी विलासपूर्ण, लग्जरी गाड़ियोंकी क्या जरूरत है, यह बोला जाता था मगर आज इन्ही गाड़ियोंका, देश की गतिमान, लोकप्रिय और भारतीय रेलवे की लाभदायक गाड़ियोंमे शुमार होता है।

वन्देभारत एक्सप्रेस ऐसी ही एक प्रीमियम, आधुनिक साजसज्जा, तकनीक वाली, देश को गौरवान्वित करनेवाली गाड़ी है। इसकी खूबियों के बारे में आप लोग इतनी बार पढ़ चुके होंगे के दोबारा से यहॉं गिनाने की कोई आवश्यकता हमें नही लगती। आज हम सिर्फ उस के लिए जो अलग व्यवहार, खबरें मीडिया में अग्रता से लाई जाती रही है, उस पर बात करेंगे।

क्या रेल पटरियों पर, रेल से टकरा कर आवारा मवेशियों के कटने की खबरें आम थी, अर्थात सुर्खियों में छपती थी? नहीं, मगर वन्देभारत के संदर्भ के कर यह खबर हेडलाइन्स में आती रही है। क्या पहले रेल पर पत्थरबाजी कभी नही हुई? होती थी और उनपर रेल प्रशासन की ओर से उपाय, उपचार और कड़ी कार्रवाई भी की गई है, मगर वन्देभारत पर यह खबरें सुर्खियों में छापी गयी। एक प्रवाद है, जिनके नाम होते है, उन्हें बड़ी आसानी से बदनाम भी किया जा सकता है, क्योंकि कौन, किस के बारे में, यह ज्यादा समझाना नही पड़ता। है ना?

कुछ वन्देभारत गाड़ियाँ खाली चल रही है। मीडिया इस मामले भी बड़ी सक्रियता से उन्हें असफल होने का तमगा लिये पीछे दौड़ रहा है। एक अभ्यास बताता है, किसी भी वन्देभारत का परिचालन खर्च, गाड़ी मात्र 30 प्रतिशत यात्रीभार से भी चले तो, निकलता है। गौरतलब यह है, देश भर के सारे जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र में वन्देभारत चले इसके लिए आग्रही थे और है। देशभर में अब तक 25 वन्देभारत गाड़ियाँ चली है और कुल 200 वन्देभारत गाड़ियाँ आने वाली है। 25 में से 2 या 3 गाड़ियाँ अपेक्षित यात्री भार से कम यात्रिओंका वहन कर रही है, तो क्या वन्देभारत एक्सप्रेस को असफ़ल करार दिया जा सकता है, कदापि नहीं।

मीडिया का दूसरा चहेता विषय है, गरीबों की गाड़ियाँ विरुद्ध वन्देभारत एक्सप्रेस। यह कैसी तुलना है? भारतीय रेल में द्वितीय श्रेणी से लेकर एग्जीक्यूटिव और वातानुकूल प्रथम तक विभिन्न टिकट श्रेणियाँ है। अनारक्षित डेमू/मेमू से लेकर सम्पूर्ण वातानुकूलित राजधानी एक्सप्रेस तक की विभिन्न गाड़ियोंके प्रकार यात्रिओंके लिए चलाये जाते है। ऐसे में कम उत्प्रन्न वाले यात्रिओंको वन्देभारत एक्सप्रेस कहाँ आड़े आती है?

शून्याधारित समयसारणी कार्यक्रम के अंतर्गत कुछ गाड़ियोंको बन्द करना तय किया गया था। यह भारतीय रेल का दूरदृष्टिता विकास कार्यक्रम था। पुराने पारम्परिक कोचेस को बदलकर नए गतिमान आधुनिक LHB कोच लाना, रेल के सम्पूर्ण विद्युतीकरण से लोको का शंटिंग कर बदलने की प्रक्रिया से परिचालन समय की बचत करना, देशभर की पटरियों को उच्च क्षमता में बदलकर उनका मजबूतीकरण करना, सिग्नलिंग यंत्रणाओंको आधुनिक बनाना, सेल्फ प्रोपल्ड लोको वाली ट्रेन सेट को चलाना, मालगाड़ियोंके लिए समर्पित गलियारों का निर्माण, अलग रेल नेटवर्क या रेल दोहरीकरण, तिहरीकरण कर अलग पटरी बनाना, रेलवे स्टेशनोंको आधुनिकता का नया जामा पहनाना ताकी यात्रिओंके आवागमन में गतिशीलता आये, उनका आवागमन सुविधाजनक हो ऐसी व्यवस्था करना यह सारा कार्य भारतीय रेल को आधुनिकता की ओर ले जाने की जद्दोजहद ही तो है, क्या यह भद्दे नैरेटिव चलाने वालोंकी समझ से परे है? शायद नही, मगर बहुत से आम लोग इससे बरगलाए जरूर जा सकते है।

मित्रों, यह बात सच है, देश का आम यात्री साधारण गाड़ियाँ, मेल/एक्सप्रेस में साधारण कोच की कामना रखता है। उसे इन वातानुकूलित प्रीमियम गाड़ियोंकी न ही चाहत है, न ही फिलहाल कोई आवश्यकता। मगर हर व्यवस्था को बेहतर और ज्यादा बेहतर करने का अपना वक्त, समय होता है। जिस तरह आज रेल आधुनिकीकरण का वक़्त चल रहा है, उन सेल्फ प्रोपल्ड डेमू/मेमू गाड़ियोंका का भी वक़्त आएगा और जरूर आएगा। अपनी मांगों, जरूरतों को संजोए रखिये। भारतीय रेल आपकी हर सुविधाओंका ख्याल रख रही है। रेल तिहरीकरण, चौपदरी करण, DFC समर्पित मालगाड़ियोंके कॉरिडोर, बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड/सेमी हाई स्पीड कॉरिडोर बन रहे है। ऐसी स्थिति में नियमित रेल मार्गों से न सिर्फ मालगाड़ियां हटेंगी बल्कि प्रीमियम और नॉनस्टॉप गाड़ियाँ भी अलग नेटवर्क पर जा सकती है।

रेल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट यह प्रसव वेदना है। आनेवाला काल भारतीय रेल के लिए एक उज्वल, उषःकाल लाने वाला है। बस, हम और आप सब इसी का इंतज़ार करते है।