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यात्रीगण कृपया ध्यान दें… पुणे से चलनेवाली छह गाड़ियोंके, नवम्बर माह के, रोके गए अग्रिम आरक्षण फिर खुल रहे है।

17 जुलाई 2024, बुधवार, आषाढ़, शुक्ल पक्ष, एकादशी, विक्रम संवत 2081

यात्रीगण, कृपया ध्यान दीजिए। 11077/78 पुणे जम्मूतवी पुणे झेलम एक्सप्रेस, 12129/30 पुणे हावड़ा पुणे आज़ाद हिंद एक्सप्रेस, 11097/98 पुणे एर्नाकुलम पुणे पूर्णा साप्ताहिक एक्सप्रेस, 11033/34 पुणे दरभंगा पुणे साप्ताहिक एक्सप्रेस, 22150/49 पुणे एर्नाकुलम पुणे द्विसाप्ताहिक सुपरफास्ट, 12149/50 पुणे पटना पुणे सुपरफास्ट गाड़ियोंकी कोच संरचना में बदलाव हेतु दिनांक 05 नवम्बर से 19 नवम्बर 2024 तक की अग्रिम आरक्षण को रोका गया था।

इन गाड़ियोंमे नवम्बर 2024 से, पुराने ICF कोच की जगह नए LHB कोच लगाए जा रहे है। चूँकि LHB कोच में पुरानी कोच संरचना से अमूमन 10% शयिकाएं, बर्थस ज्यादा रहती है अतः PRS में उक्त बदलाव के लिए उक्त अवधि (05/11/2024 से 19/11/2024 तक) अग्रिम आरक्षण को रोका गया था। उसे, पुणे से चलने वाली छहों गाड़ियों, 11077 पुणे जम्मूतवी झेलम, 12129 पुणे हावड़ा आज़ाद हिन्द, 11097 पुणे एर्नाकुलम, 11033 पुणे दरभंगा, 22150 पुणे एर्नाकुलम और 12149 पुणे पटना की अग्रिम आरक्षण दिनांक 18/7/2024 को खोली जा रही है।

यह निम्नलिखित गाड़ियाँ LHB कोच संरचना में बदली जा रही है।

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भारतीय रेल में ऐसा आरक्षण मिल जाए तो, यात्रिओंके लिए बड़ी मुसीबत

04 अक्तूबर 2023, बुधवार, आश्विन, कृष्ण पक्ष, षष्टी, विक्रम संवत 2080

RAC टिकट, भारतीय रेल की आरक्षित टिकट में एक टॉर्चर, यातना। RAC का अर्थ है रिजर्वेशन अगेन्स्ट कैंसलेशन। मतलब आपने भलेही बर्थ बुक कराई थी, चार्ट बनने के बाद, आपका टिकट RAC स्टेट्स में रह गया है तो आपको शेयरिंग सीट मिल रही है। और आप गाड़ी के प्रस्थान समय से 30 मिनट पहले जो सेकण्ड चार्टिंग होता है उससे पहले, चाहे तो ₹ 60/- रद्दीकरण शुल्क चुकाकर अपना आरक्षण रद्द नही करा रहे है तो आप को साइड लोअर बर्थ पर दो यात्रिओंके बीच सीट शेयर कर यात्रा करना मन्जूर है, यह समझा जायेगा। यह बात भी तय है, यात्रा के दौरान, जब भी आपके गंतव्य तक बर्थ उपलब्ध होगी तो सब से पहले RAC टिकट धारक को बर्थ दी जाती है।

अब यह RAC टिकट यातनामय क्यूँ बन जाता है, यह एक घटना के साथ समझते है।

दिन की ट्रेनों में रिजर्वेशन अगेंस्ट कैंसिलेशन (आरएसी) टिकट धारकों को समायोजित, एडजस्ट करना भारतीय रेलवे के लिए एक चुनौती बनी हुई है क्योंकि साइड अपर बर्थ पर यात्रा करने वाले यात्री सुबह 6 बजे के बाद साइड लोअर बर्थ पर खिड़की वाली सीट के हकदार होते हैं।

रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है की दिन की ट्रेनों में साइड लोअर बर्थ पर तीसरे व्यक्ति को बिठाने का मुद्दा वादग्रस्त विषय बना हुआ है। इस मुद्दे पर हमेशा ही शिकायतें आती हैं और टीटीई उन्हें सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास करते हैं। ऐसी ही एक शिकायत पर कार्रवाई करते हुए, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने पिछले सप्ताह दक्षिण रेलवे को आरटीआई अधिनियम, 2005 के अंतर्गत, पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना के अनुसार याचिकाकर्ता को पूरी जानकारी देने का निर्देश दिया था। एस. राजन द्वारा मंडल रेल प्रबंधक, तिरुचिरापल्ली को दायर की गई एक याचिका में उन्होंने बताया कि उन्हें और उनकी पत्नी को एक दिन की रेल में वृद्धाचलम से मदुरै तक सीट एस 3 की 7 क्रमांक की साइड लोअर बर्थ पर आरएसी आबंटन दिया गया था। जब वे साइड की निचली बर्थ की दो विंडो सीटों पर बैठने गए, तो साइड की ऊपरी बर्थ के यात्री ने एक सीट ले ली थी। उन्होंने आश्चर्य जताया कि एक खिड़की वाली सीट पर दो यात्री कैसे बैठ सकते हैं चूँकि दोनों यात्रिओंकी RAC सीट क्रमांक 7 ही थी।

उन्होंने रेल प्रशासन से जानना चाहा की ऐसी स्थितियों में रेलवे नियम क्या कहते हैं। लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के जवाब से असंतुष्ट होकर उन्होंने सीआईसी के समक्ष अपील दायर की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद केंद्रीय सूचना आयुक्त ने रेलवे अधिकारियों से याचिकाकर्ता को जानकारी उपलब्ध कराने को कहा, जिसका उत्तर की अभी प्रतीक्षा है। यात्रा के दौरान सहयात्रिओंमें आपसी सहयोग, समझदारी, तालमेल न हो तो रेल प्रशासन और ड्यूटी रेल कर्मी भी किसी समाधान तक नही जा पाते है।

रेल प्रशासन ने ऐसी दुविधापूर्ण अवस्था से बचने के लिए गरीब रथ एक्सप्रेस में RAC टिकटों का आबंटन ही बन्द कर दिया है। गरीब रथ एक्सप्रेस में पहले ही 9 यात्री साइड मिडल बर्थ की रचना में दिन की यात्रा में अतिरिक्त होते है। वर्षभर व्यस्त चलनेवाली गाड़ियोंमे, कई ऐसे RAC टिकट धारक यात्री रहते है, जो अपनी पूरी यात्रा बिना बर्थ के, सीट पर ही बैठ कर ही सम्पन्न करते मिल जाएंगे। विशेष बात तो यह है, वातानुकूल कोचों में भी यह दुर्दैवी यात्री, बिना बेडिंग सेट के यात्रा करते है। यह RAC वाली दुविधा जब बड़ी ही विचित्र हो जाती है, की एक ही सीट का आबंटन में दो यात्रिओंमें में एक महिला और दूसरा पुरूष यात्री हो।

रेल प्रशासन को चाहिए की इस गरीब रथ वाली RAC टिकटों के आबंटन रद्द करने की नीति का कार्यान्वयन अन्य मेल/एक्सप्रेस औऱ अन्य सभी गाड़ियोंके शायिका आरक्षण में अवश्य ही करना चाहिए। प्रत्येक स्लीपिंग कोच में दस से बीस की संख्या में, आरक्षण सहित पूर्ण किराया चुकाए हुए, अधिकृत यात्री का कोच में अतिरिक्त होना निश्चित ही परेशानी का सबब है।

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भारतीय रेल के वाणिज्य विभाग का सम्पूर्ण डिजिटलिकरण ; सम्भव है, मगर नियत? शायद नही!

07 मई 2023, रविवार, जेष्ठ, कृष्ण पक्ष, द्वितीया, विक्रम संवत 2080

भारतीय रेल की हाल ही में एक खबर आई थी, रेल विभाग ने अपनी खुद के सारे याने पाँच मुद्रणालय बन्द करने का निर्णय लिया है। इन मुद्रणालयों में रेल विभाग की स्टेशनरी, फॉर्म्स, टिकट एवं समयसारणीयाँ छापी जाती थी। इस डिजिटलाइजेशन एवं कम्प्यूटर युग मे कागज़ी कार्रवाई दिनोंदिन कम होती जा रही है। रेल विभाग ने अपनी समयसारणीयाँ तो बरसोंसे या तो बन्द कर दी है या उन्हें निजी ठेकोंपर उतार दिया है। आरक्षित यात्री टिकटें 80 प्रतिशत से ज्यादा डिजिटली, ई-टिकट्स में बुक होती है। ऐसे में क्या रेल्वेके वाणिज्य विभाग अर्थात यात्री टिकट्स के हिस्से का सम्पूर्ण डिजिटलाइजेशन सम्भव है?

आज भारत की आबादी के 90 फीसदी से ज्यादा लोग मोबाईल का उपयोग करते है, यह संख्या तकरीबन 120 करोड़ है। उनमें करीबन 60 करोड़ से ज्यादा स्मार्ट फोन उपभोक्ता है। इन यूजर्स को हम डिजिटल ग्राहक मान सकते है। आरक्षित ई-टिकट के लिए रेलवे के पास IRCTC की वेबसाइट एवं मोबाईल ऍप की उन्नत व्यवस्था है। साथ ही अनारक्षित टिकटोंके लिये UTS ऍप कार्यान्वित है। रेल्वेके PRS काऊंटर्स से सुदुर बैठा व्यक्ति भी इन माध्यमोंसे अपने यात्री टिकट बड़ी आसानीसे खरीद सकता है। ऐसे में यात्री टिकटोंका सम्पूर्ण डिजिटलाइजेशन सहज सम्भव है। आगे इस खण्ड के डिजिटलाइजेशन के सम्भाव्य फायदे/नुकसान देखते है।

यात्री टिकिटिंग के डिजिटलाइजेशन के फायदे यात्री की नज़र से देखें तो, यात्री को अपने रेल टिकट, घर बैठे, बिना भीड़भाड़ का सामना किये, क़तारों में लगे बगैर बड़ी आसानी से मिल सकते है। वह बड़े इत्मिनान से अपनी सुविधानुसार अनेक गाड़ियाँ, सभी श्रेणियों को खंगाल कर अपनी टिकट बनवा सकता है। बनी हुई टिकटोंमे अकस्मात बदलाव अर्थात रद्दीकरण, सवार होने के स्टेधन में बदलाव इत्यादि बड़ी सुगमता से कर सकता है। डिजिटल पेमेंट में लेनदेन भी बड़ा सुविधाजनक होता है। अब रेल्वेके हैसियत से देखे तो, यात्री की रेल आहाते में टिकट व्यवस्था करना, उसकी सुविधाओं का ध्यान रखना, अलग अलग कर्मियों की नियुक्ति करना, स्टेशनरी का उपयोग करना, धन संग्रह और उसका लेनदेन सम्भालना, दलालों की दखल इन सब से रेल विभाग निज़ात पा सकता है।

डिजिटलाइजेशन के नुकसान भी है, यात्रिओंको अपने रेल टिकट की व्यवस्था खुद करनी है। टिकट निकालने के साधन से लेकर उसे जरूरतनुसार छापने तक और कुछ गलती हो गयी तो जिम्मेवारी भी उनकी खुद की। दूसरी बात रेल तकनीक की है। कई बार पेमेंट हो जाती है और टिकट नहीं बनती। ऐसी स्थिति में कई बार ग्राहक का बटुवा साफ़ हो जाता है, और हाथ बिना टिकट के ही रह जाते है। यह बात और है, अन बुक्ड टिकट का धन 2-4 दिन में खाते में लौट जाता है। मगर रेल टिकट बुकिंग में समय की नज़ाकत, जरूरत तो ई-टिकट निकालने वाले भलीभाँति जानते है। 😊

अब रेल विभाग के नुकसान की बात करते है। वैसे रेल विभाग का सीधा तो नुकसान नहीं है, बस PRS प्रतिक्षासूची के टिकट धनवापसी के लिए उपस्थित नहीं होते और वह यात्री जैसेतैसे अपनी रेल यात्रा पूरी कर लेते है। वहीं ई-टिकट के प्रतिक्षासूची टिकट अपने आप रद्द हो कर धनवापसी भी हो जाती है। यह रेल विभाग का एक तरह का घाटा है।

सम्पूर्ण डिजिटाइजेशन में रेल विभाग अपनी प्रतिक्षासूची पर भी अंकुश रख सकता अर्थात प्रतिक्षासूची के 4 महीने अग्रिम धन की नीयत पर न हो तो!😊 रेल विभाग जब अपनी आरक्षित टिकिटिंग सम्पूर्ण डिजिटलाइज कर दें, तब जो गाड़ियाँ पूर्णतयः बुक हो चुकी हो, उन्हें बुकिंग सूची से हटा देना चाहिए, अर्थात जैसे ही पूर्व बुक्ड टिकटोंका कैंसलेशन हो और सीट्स/बर्थस बुकिंग के लिए उपलब्ध हो जाये, वह गाड़ी फिर से बुकिंग साइट्स पर दिखने लग जाएगी। यह चीजें यदि आरक्षित टिकटोंका सम्पूर्ण डिजिटलाइजेशन हो चुका हो, तभी सम्भव है।

आजकल आरक्षित कोचों में अतिरिक्त, अनारक्षित और प्रतिक्षासूची धारकोंकी बड़ी भीड़ चलती है। यह लोग उक्त श्रेणियों का पूर्ण किराया चुकाए रहते है, अतः नैतिक रूप से उन्हें चेकिंग स्टाफ उतारते नही। दूसरा काम नियमानुसार कार्रवाई का होता है, जो रेल्वेके दो स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में बंट जाने की वजह से जटिल हो जाता है। रेल सम्बन्धी जानकारों ने बताया, रेल सुरक्षा बल को किसी भी अवांछित यात्री को कानूनी प्रक्रिया हेतु GRP स्थानीय पुलिस दल को सौंपना पड़ता है। इसी के चलते, रेल जाँच दल, सुरक्षा बल अपनी कार्रवाई को दण्ड तक सीमित कर लेते है और ऐसे अवांछनीय यात्री, अवैध विक्रेता और तृतीय पंथी, मांगनेवाले लोग रेल क्षेत्र, गाड़ियोंमे टहलते, यात्रा करते नजर आते है।

आखिर प्रश्न वहीं के वहीं रह जाता है, क्या रेल विभाग अपने यात्रियोंके साथ डिजिटलाइजेशन का कड़वा घूँट पिने को तैयार है? क्योंकि रेल यात्रिओंको भी अब PRS के छपे टिकटोंकी प्रतिक्षासूची वाले, अपनेआप रद्द न होने वाले टिकट पर सवारी करने की आदत हो गयी है।