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रेल यात्रिओंके एमिनिटीज की बैंड बजी पड़ी है, और रेल प्रशासन है, की ‘नॉन-फेयर’ रेवेन्यू बटोरने में लगा है।

25 दिसम्बर 2023, सोमवार, मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, चतुर्दशी, विक्रम संवत 2080

मित्रों, आजकल आये दिन, आप सोशल मीडिया में रेल के आरक्षित कोचों में यात्रा करती बेतहाशा भीड़ देखी होगी। पहले यह मंजर स्लिपर क्लास तक सीमित था मगर यह आगे बढ़ वातानुकूल कोचों तक पहुंच गया है, और तो और यात्रिओंकी भीड़ अब प्रीमियम गाड़ियाँ जैसे की राजधानी एक्सप्रेस तक को नही बख्श रही। राजधानी गाड़ियोंके वातानुकूल प्रथम वर्ग के कोच में भी अनारक्षित यात्री बेखटके यात्रा कर रहे है। ऐसी अराजक दुर्व्यवस्था की वजहें कई निकल आएगी। आज उस पर चर्चा करते है।

मित्रों, सबसे पहले हम द्वितीय श्रेणी ग़ैरवातानुकूलित मगर आरक्षित स्लिपर क्लास देखते है। अपने जमाने मे यात्रिओंके बीच बेहद लोकप्रिय यह श्रेणी, यात्रिओंके लिए किफायती और सुविधाजनक रहती थी। द्वितीय श्रेणी साधारण अनारक्षित जनरल क्लास के टिकट से अमूमन दुगना किराया देकर यात्री आरक्षित शायिका पा लेता था और उसकी रेल यात्रा सुगमता से हो जाती थी। इसमे अतिक्रमण शुरू हुवा सीजन पास MST धारक और कम अन्तर की यात्रा करनेवाले रेल कर्मियों द्वारा, यह लोग “बस, अगले स्टेशन तक जाना है” कह स्लिपर कोच में, आरक्षित यात्रिओंके बीच, उन्हें खिसकाकर बैठ जाते थे। उनके देखा-देखी आम यात्रिओंने भी अपनी घुसपैठ बना ली।

स्लिपर वर्ग में घुसे अतिक्रमित यात्रिओंमें PRS, छपे आरक्षित मगर प्रतिक्षासूची के टिकट धारकोंकी संख्या भी बहुत होती है। यह एक गलत धारणा यात्रिओंके बीच बैठ गयी है या बिठा दी गयी है, की प्रतिक्षासूची का काउंटर वाला, कागजी टिकट रद्द नही होता और वह स्लिपर क्लास के आरक्षित कोच में यात्रा करने के लिए अनुमतिपात्र होता है। हालांकि ऐसा बिल्कुल नही है, सभी प्रतिक्षासूची टिकट रद्द ही होते है केवल छपे टिकट की धनवापसी करने हेतु काउंटर्स पर जाना आवश्यक है और यात्री वहाँ जाता नही अपितु स्लिपर कोच में सवार हो जाता है। यही रवायत आजकल वातानुकूल कोचों में पहुंच गई है।

पहले और आजकल की रेल यात्रा में ऐसा क्या हो गया की आरक्षित कोचों में अनाधिकृत घुसपैठ बढ़ गयी? एक तो अनारक्षित द्वितीय श्रेणी टिकटोंकी असीमित बिक्री। कोई सीमा ही नही है, इन टिकटोंको बेचने की, चौबीसों घन्टे टिकट काउंटर्स खुले रहते है और अब UTS ऑनलाइन भी टिकट खरीद सकते है। दूसरा यह की आजकल आदर्श कोच संरचना के चक्कर मे रेल प्रशासन ने लगभग सभी मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमे अनारक्षित कोच जोड़ने कम कर दिए है। बमुश्किल एक कोच आगे और एक कोच आखिर में होता है। जिसके हजारों अनारक्षित टिकट बेचे गए हो और मार्ग का प्रत्येक स्टेशन अलग से वही टिकट बेचते ही जा रहा है, कहाँ तक बैठ पाएंगे यात्री? यह यात्री अपना रुख थोड़े खाली दिखनेवाले स्लिपर कोच की ओर करते है और अब स्लिपर कोचों की हालात भी अनारक्षित द्वितीय श्रेणी जैसी हो गई तो बहुतायत में लगे वातानुकूल कोचों की तरफ करने लगे है।

अब मुख्य मुद्दे पर आते है। पहले प्रत्येक आरक्षित कोच, चाहे वह ग़ैरवातानुकूलित स्लिपर हो या वातानुकूल थ्री, टु टियर, प्रथम श्रेणी हो, रेल प्रशासन की ओरसे ‘एमिनिटी स्टाफ़’ TTE या कंडक्टर अवश्य ही हाजिर रहता था। गाड़ियोंमें वातानुकूल कोच बढ़ने लगे तो दो/तीन स्लिपर में एक TTE रहने लगे, जो यात्रिओंके अनाधिकृत प्रवेशपर अंकुश लगाते थे। TTE को कोच के सामने हाजिर देख, आज भी अनाधिकृत यात्री सकपका जाता है।

मगर रेल प्रशासन की बदलती नीति में एमिनिटीज स्टाफ़ का मूल्य कम होता नजर आ रहा है। लगभग आधे से ज्यादा स्टाफ़ को टिकट चेकिंग में बड़े बड़े राजस्व के लक्ष्य के साथ बांध दिया जाता है। अखबारों की सुर्खियों में महीने में एक -एक करोड़ रुपए वसूलने वाले टिकट जांच कर्मियोंकी तस्वीरें छपती है, रेल प्रशासन उन्हें प्रमाणपत्र देता है, बड़ी वाहवाही होती है। इधर नियमित, अधिकृत यात्री जो महीनों पहले आरक्षित टिकट लेकर यात्रा के लिए निकल पड़ता है और देखता है, उसके बर्थ के पास 10 लोगोंका अनावश्यक ही जमावड़ा है। उसे शौचालय जाना है, तो पूरा पैसेज भीड़ से भरा पड़ा है। यहाँतक की शौचालय में भी दो-चार लोग घुसे पड़े है।

सोशल मीडिया में गोरखपुर के सांसद मा. रविकिशन शुक्ल का एक पत्र वायरल हुवा है,

उपरोक्त पत्र में टिकट चेकिंग स्टाफ़ की वहीं व्यथा अंकित है, जिस का विस्तृत वर्णन हम यहाँपर और पहले भी कई बार हमारे लेख में कर चुके है।

रेल प्रशासन को चाहिए की वह द्वितीय श्रेणी टिकटों के बेचे जाने पर बन्धन लगाए। द्वितीय श्रेणी अनारक्षित टिकट केवल 200 किलोमीटर तक की यात्रा के लिए ही वैध हो। 200 किलोमीटर से ज्यादा के लिए केवल आरक्षित द्वितीय श्रेणी 2S का निर्धारण करना चाहिए। PRS काउंटर्स से प्रतिक्षासूची के टिकट की बिक्री बिल्कुल बन्द करनी चाहिए। इन काउंटर्स पर केवल ‘उपलब्ध’ सीटों/शायिका के टिकट ही बेचे जाए। एमिनिटी स्टाफ़ बढ़ाया जाए ताकि प्रत्येक दो/तीन कोच के बीच एक TTE हाजिर रहे। RAC टिकट भी प्रतिक्षासूची के जैसे ही चार्ट बनने के बाद रद्द हो जाना चाहिए। कोई अर्थ ही नही है के 72/80 यात्री क्षमता के कोच में RAC के नामपर, अतिरिक्त 8/9 यात्रिओंको जबरन अधिकृत किया जाता है।

आशा करते है, सांसद महोदय ने बात उठाई है, तो अवश्य ही उचित कार्रवाई होगी।

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