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भारतीय रेल, आम आदमी के लिए नैशनल कैरियर! मगर लोकप्रतिनिधियोंकी दखल, क्षेत्र के लिए प्रश्न गिनेचुने, नाममात्र।

27 दिसम्बर 2023, बुधवार, पौष, कृष्ण पक्ष, प्रतिपदा, विक्रम संवत 2080

एक सर्वे तो इस मुद्दे पर हो ही जाए! ऐसा कोई सांसदीय क्षेत्र शायद ही होगा, जहाँ के स्थानीय रेल उपयोगकर्ता उनके लोकप्रतिनिधि से संतुष्ट होंगे। कुछ नेता गण अपवाद है, मगर कितने 2% या 3%?

जी। हाल ही में एक रेल संगठनोंकी गोष्ठी में इस विषय पर वार्तालाप हुवा और बात बढ़ते बढ़ते क्षेत्र के लोकप्रतिनिधियोंके, रेल यात्रिओंके लिए, उनकी रेल सुविधाओं सम्बन्धी समस्याओं के विषय मे सदन में वार्तालाप करने या समस्याओं का समाधान करने के लिए पहल करने पर जाकर खत्म हुई। नतीजा चौकाने वाला था। प्रत्येक संगठन इस बात से सहमत था, उनके प्रश्नोको सुलझाने हेतु उचित प्रतिनिधित्व नही मिल रहा है।

कहा गया है, इस कैलेंडर वर्ष में भारतीय रेल के यात्रिओंकी संख्या 700 करोड़ से भी ज्यादा है और संशोधन का विषय रहेगा, भारतीय रेल के यात्रिओंकी समस्याओं के समाधान हेतु उठने वाले प्रश्न अनुपात में कितने थे?

हम भारतियोंकी उच्चतम सहिष्णुता का नमूना देखना हो तो भारतीय रेल में यात्रा कर के देखिए। भाईसाहब, वन्देभारत जैसी प्रीमियम गाड़ियोंमें नही, आम भारतियोंकी कोई भी मेल/एक्सप्रेस की किसी भी श्रेणी का आरक्षित टिकट लेकर यात्रा कीजिएगा। चूँकि आप अनारक्षित द्वितीय श्रेणी में तो यात्रा करना दूर, प्रवेश भी नही कर पाओगे अतः आरक्षित कोच का विकल्प दे रहे है। ग़ैरवातानुकूलित स्लिपर क्लास की स्थिति अब द्वितीय श्रेणी अनारक्षित कोच की तरह रहती है और वातानुकूलित थ्री टियर, टु टियर की शयनयान स्लिपर की तरह। यात्री जस तस अपनी बर्थ पर जाकर जम जाए तो बेहतर है, उसके बाद न तो वह कोच में लगे बेसिन का न ही शौचालय का उपयोग कर पाता है।

वातानुकूलित थ्री टियर है जी।
यह तो ए सी फर्स्ट क्लास है!!!

रेल प्रशासन ने कोच संरचना के मानकीकरण के नाम पर जो कहर बरपाया है, वह अदभुत, अकल्पनीय है। निजामुद्दीन से वास्को के बीच प्रतिदिन चलनेवाली गोवा एक्सप्रेस का उदाहरण लीजिए। गाड़ी की कोच संरचना मानकीकरण में बदली, मात्र दो कोच द्वितीय श्रेणी और दो ही कोच स्लिपर के। अब परिस्थिति यह है, प्रतिदिन इस गाड़ी के वातानुकूलित कोच साधारण अनारक्षित कोच की तरह भरे रहते है। यात्रिओंकी सुविधाओं का कोई माई-बापू नही। आरक्षण कर यात्रा करने वाला यात्री वर्ष में कितनी बार रेल में पहुंचता होगा? हद हो गई दो या तीन बार। एक बार यात्रा पूर्ण हुई वह उसके कटु अनुभव पीछे छोड़ देता है। कोई शिकायत या पत्राचार नही करता और प्रण लेता है, आगे से और अप्पर क्लास की टिकट लेकर यात्रा करने का प्रयत्न करेगा।

क्या हमारे जनप्रतिनिधि अपने अपने क्षेत्र से गुजरने वाली रेलगाड़ियों की ऐसी भीषण परिस्थितियों से अवगत नही है? सवारी गाड़ियोंके किफायती किराए, उन गाड़ियोंके साथ ही अदृश्य हो गए। उनकी जगह ‘0’ शून्य क्रमांक से शुरू होनेवाले विशेष गाड़ियोंका चलन आ गया। ऐसी विशेष गाड़ियाँ जो कभी समयपर नही चलती, जिनके कोचेस अमूमन पुराने जमाने के होते है, जिनके साधारण किराए ही ‘तत्काल’ दर से वसूले जाते है, जिनके परिचालन की कोई शाश्वती (गारण्टी) नही होती।

रेलवे स्टेशनोंपर पहले वर्दीधारी टिकट जांच निरीक्षक उपस्थित रहते थे जो आज कल गाड़ियोंमे अकस्मात जाँच दलोंमें चल रहे है। स्टेशनोंके आगमनोंमें आगंतुकों पर कोई पाबन्दी नही थी अब तो गंतव्यों पर भी कम ही दिखाई पड़ती है। लाखों रुपए मूल्योंके स्कैनर केवल दिखावे मात्र भर रह गए है। उन स्कैनरोंके पास भले ही जाँच अधिकारी उपस्थित हो मगर रेलवे स्टेशनोंपर पहुंचने के कई अन्य रास्ते राजमार्ग की तरह सरे आम खुले रहते है। ऐसी शायद ही कोई मेल/एक्सप्रेस होगी जिनमे यात्रिओंको अवैध विक्रेता, त्रुतीयपंथी, भीख मांगने वाले, फटेहाल झाड़ू लगानेवालों से सामना न करना पड़ता हो।

वहीं बात गाड़ी में खान-पान सामग्री बेचनेवाले वेंडर्स की भी है। कभी बिल पर बहस तो कभी सामग्री की गुणवत्ता पर खिचखिच। आम यात्री यह मान चुका है, पानी बोतल ₹20/- में ही मिलती है।

आप सोचते होंगे इन सब बातोंके के बीच, समस्याओं के लिए (जिसकी चर्चा हम हमेशा ही करते है) आज जनप्रतिनिधियों का विषय क्यों उपस्थित किया गया? मित्रों, आम रेल यात्री सोचता है, कोई है जो हमारे प्रश्न, हमारी समस्याएं उन तक पहुंचाए, जो इस पर निर्णय लेते है और यह काम उन्ही जनप्रतिनिधियों का है। बातें बहुत छोटी है और हमारी सहिष्णुता बहुत विशाल। हम रेल यात्रा का समापन कर जब गाड़ी से उतरते ही ‘जान बची लाखों पाए’ वाली कहावत के उक्त आचरण में ढल जाते है और अपनी जिंदगी की रेस में इतर समस्याओं से दो-चार होने आगे बढ़ जाते है। बस, हम चाहते है, हमारे प्रश्न को कोई अपनी आवाज़ दे, कोई ऊपर तक उसे पहुंचाए।

(लेख में उधृत तस्वीरें प्रातिनिधिक रूप में, रेल संगठन ग्रुप से साभार)

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